बिहार की राजनीति के सबसे बड़े धुरंधर नेता नीतीश कुमार ने एक बार फिर विश्वास मत जीत कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपना कब्जा बनाए रखने में सफलता हासिल कर ली है। तमाम संभावनाओं और आशंकाओं के बीच हुए शक्ति परीक्षण में उन्होंने 130 वोटो के साथ विश्वास मत प्राप्त कर लिया। नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने और पांचवी बार विश्वास मत की कसौटी पर खरा उतरने वाले नीतीश कुमार को भले ही राजनीति के जानकार कुशल खिलाड़ी मानते हो लेकिन वास्तविकता यह है कि यह देश की राजनीति की एक बड़ी हार और अवसरवादी राजनीति की एक बड़ी जीत है। जिसमें सिर्फ और सिर्फ सत्ता शीर्ष पर बने रहने को राजनीति मान लिया गया है। अगर बात विश्वसनीयता की की जाए तो देश की राजनीति से उसका पूरी तरह से सफाया हो चुका है। अभी नीतीश कुमार की पहल पर ही बीते दिनों कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों द्वारा इंडिया नाम से गठबंधन बनाया गया था। भाजपा और पीएम मोदी को 2024 में सत्ता में आने से रोकने के लिए बनाए गए इस गठबंधन में नीतीश कुमार कहीं न कहीं स्वयं को पीएम बनाने का सपना संजोए बैठे थे लेकिन जब उन्हें इंडिया के जरिए अपना यह सपना पूरा होता नहीं दिखा तो वह एक बार फिर पलटी मार गए और फिर उसी एनडीए और भाजपा के पाले में जाकर खड़े हो गए। जिसमें वह पहले थे लोगों खासतौर पर बिहार की आम जनता को इस सवाल का जवाब जरूर ढूंढना चाहिए कि नीतीश को एनडीए से नाता तोड़कर राजद के साथ मिलकर सरकार बनाने की क्या जरूरत थीघ् और अब आरजेडी को झटक कर फिर भाजपा और राजग का दामन थामने की क्या मजबूरी थी। क्यों उन्हें लालू यादव की राजद और उनके घपले घोटाले की पहले से जानकारी नहीं थीघ् बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही अपनी इस राजनीतिक उठा पटक को राज्य के हित या फिर राष्ट्रहित में बताकर लोगों को भ्रमित किया जा रहा हो लेकिन यह देश अवसरवादी राजनीति का ही एक ऐसा उदाहरण है जिसे बिहार ही नहीं पूरे देश की जनता को सबक के तौर पर लेना चाहिए। नेताओं और राजनीतिक दलों की इस अवसरवादी राजनीति ने सभी मर्यादाओं और लोकतंत्र की आत्मा को किस तरह छलनी किया है यह सत्य भी किसी से अब छिपा नहीं है अब जनादेश का भी इस देश की राजनीति में कोई अर्थ नहीं रह गया है आम आदमी भले ही किसी के भी पक्ष में जनादेश दे लेकिन सत्ता किसके पास रहेगी यह देश के अवसरवादी दल और नेता ही तय करेंगे। भले ही नीतीश कुमार विधानसभा में बहुमत साबित करने में पास हो गए हो लेकिन 2024 के चुनाव में क्या जनता बिहार की सभी 40 सीटों पर जीत के लिए उस जेडीयू व भाजपा के मंसूबों को पूरा होने देगी जिसके लिए यह खेला हुआ है यह आने वाला समय ही बताएगा।