हल्द्वानी की घटना खतरे का संकेत

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उत्तराखंड प्रशासन का दावा है कि हल्द्वानी की घटना कोई सांप्रदायिक हिंसा नहीं है यह शासन—प्रशासन की व्यवस्थाओं पर हमला है। जिसमें कोई संदेह भी नहीं है कि वास्तव में यह घटना न तो दो संप्रदायों के बीच टकराव की घटना है और न किसी झगड़े फसाद के कारण घटित हुई है। एक अन्य महत्वपूर्ण बात जो प्रशासनिक अधिकारी कह रहे हैं वह यह है कि इस घटना को एक सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया है। निश्चित तौर पर इतनी बड़ी भीड़ का पुलिस वालों के खिलाफ हल्ला बोल, घरों की छतों पर जमा पत्थर और पेट्रोल बमों के इस्तेमाल से यह साफ हो जाता है कि इसकी तैयारियां पूर्व समय में ही कर ली गई थी। हमले के दौरान या भिड़ंत के समय इस तरह की तैयारी नहीं की जा सकती थी। लेकिन इस घटना का ऐसे समय में घटित होना जब एक—दो दिन पहले ही राज्य सरकार द्वारा विधानसभा में समान नागरिक संहिता बिल को पास कराया गया है। मुस्लिम समुदाय के अंदर पनप रहे असंतोष और आक्रोश का परिणाम नहीं है। इसकी संभावनाओं को भी सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कल जब इस हिंसा में घायलों से मिलने के लिए हल्द्वानी गए थे तो उनका कहना था कि इससे पूर्व प्रदेश में कभी कोई ऐसी घटना सामने नहीं आई है। अगर अतिक्रमण हटाने के विरोध को इसका कारण मान लिया जाए तो ऐसा तो कुछ नहीं है कि हल्द्वानी में पहली बार या राज्य में पहली बार अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई हुई हो सरकार लंबे समय से मजारों और धार्मिक संरचनाओं को हटाने का अभियान चला रही है। सरकारी और वन विभाग की जमीनों पर किए गए अतिक्रमण के खिलाफ चलाए जाने वाले इस अभियान में अब तक सैकड़ो संरचनाओं को ढहाया जा चुका है फिर आखिर हल्द्वानी में क्या कुछ ऐसा हुआ कि इतने व्यापक स्तर पर हिंसा और आगजनी पर लोग उतारू हो गए यह सबसे अहम और विचारणीय सवाल है। खास बात यह है कि इस घटना की प्रतिगूंज उत्तर प्रदेश में सुनाई दी। बरेली में कल जिस तरह से मुस्लिम समाज के लोगों की भीड़ सड़कों पर दिखाई दी और पत्थर बाजी तक हुई उससे भी समझा जा सकता है कि इस बवाल की जड़ में क्या कारण निहित है। भले ही प्रदेश में समान नागरिक संहिता को लेकर किसी तरह का विरोध न दिखाई दे रहा हो या अयोध्या में राम मंदिर निर्माण व प्राण प्रतिष्ठा के दौरान सब कुछ मंगलमय दिखा हो या फिर यूपी और उत्तराखंड में लैंड जिहाद के खिलाफ किसी कार्रवाई का कोई विरोध न किया गया हो लेकिन कहीं न कहीं कोई न कोई चिंगारी है जरूर जो भड़क कर शोला बनने को बेताब है हल्द्वानी की घटना सही मायने में शासन—प्रशासन के लिए सतर्कता का एक अलार्म जरूर है। लोकसभा चुनाव से पूर्व कुछ अराजक ताकते प्रदेश और देश का माहौल बिगाड़ सकती हैं। हल्द्वानी की घटना इसका एक संदेश है। बात चाहे यूपी की हो या फिर उत्तराखंड की दोनों ही राज्यों की सरकारों को इस घटना को हल्के में नहीं लेना चाहिए। क्योंकि यह एक बड़े खतरे का संकेत है।

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