किसी भी मुकाबले में आप तभी जीत सकते हैं जब या तो आप अपने प्रतिद्वंद्वी से अधिक ताकतवर हो या फिर अपने प्रतिद्वंद्वी की ताकत को कम करने का हुनर रखते हो। और अगर बात राजनीति के अखाड़े की हो तो वहां यह डिवाइड एंड रूल का फार्मूला 100 फीसदी कामयाब रहता है। भले ही कांग्रेस कभी देश की नंबर वन राजनीतिक पार्टी रही हो लेकिन भाजपा अब कांग्रेस को इस दौड़ में बहुत पीछे छोड़ चुकी है। इसके पीछे के कारणों पर अगर गौर किया जाए तो उनके पीछे उसकी रणनीति ही है जिस पर भाजपा के नेताओं ने मुकम्मल तरीके से काम किया है। कांग्रेस ही नहीं अन्य विपक्षी दलों के तमाम बड़े नेता आज भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं। भाजपा ने सिर्फ अपनी सांगठनिक ताकत को ही नहीं मजबूत किया उसने दूसरे दलों में सेंधमारी के जरिए भी उनकी ताकत को छीनकर उन्हें अत्यंत ही कमजोर स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। वर्तमान में भाजपा का वोट प्रतिशत और उसका सांगठनिक ढांचा इतना मजबूत हो चुका है कि अब समुचा विपक्षी दल भी एक साथ मिलकर उसे हरा पाने की क्षमता नहीं रखते हैं लेकिन भाजपा अभी कुछ छोटे और क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन की राजनीति को ढोने का काम कर रही हैं जो उसकी रणनीति का हिस्सा ही है वहीं भाजपा अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए अभी भी अन्य दलों के नेताओं को अपनी पार्टी में बाहें फैलाकर स्वागत कर रही है। उत्तराखंड के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भटृ का कहना है कि भाजपा का दरवाजा सभी अन्य दलों के नेताओं के लिए खुला हुआ है तथा फरवरी माह में बड़ी संख्या में दूसरे दलों के नेताओं को भाजपा की सदस्यता दिलाई जाएगी भले ही वह जिस 1200 नेताओं की सूची अपने पास होने की बात कर रहे हो वह हवाई हवाई हो लेकिन दर्जन पर ऐसे नेता और कार्यकर्ता तो हो सकते हैं जो जनाधार वाले हो। जिनके पीछे दो चार सौ लोगों की भीड़ हो। 2017 के चुनाव से पूर्व प्रदेश में एक बार भाजपा की तो एक बार कांग्रेस की सरकार को हमने बनते हुए देखा है लेकिन 2016 में कांग्रेस में हुए बड़े विभाजन में जब दर्जन भर बड़े नेता जो मंत्री और विधायक थे एक साथ कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में चले गये थे, तब से लेकर कांग्रेस किसी एक चुनाव में भी जीत दर्ज नहीं कर सकी है। राजनीति की चैन की कड़ियां जब एक बार बिखर जाती है तो फिर उन्हें जोड़ पाना कोई आसान काम नहीं होता है। उत्तराखंड कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झौंककर देख ली है वह विधानसभा और लोकसभा चुनाव तो क्या एक उपचुनाव तक नहीं जीत सकी है। उत्तराखंड तो महज एक उदाहरण है यूपी और एमपी जैसे राज्य तथा राजस्थान और पंजाब तथा हरियाणा जैसे राज्यों में इसके कई उदाहरण हैं। भाजपा की हर चुनाव से पूर्व यह कोशिश होती है कि वह दूसरे दलों को कमजोर करने के लिए उनके नेताओं को अपने पाले में खींचने में कोई संकोच नहीं करती वह चुनाव के बाद भी गोवा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में उसे तोड़फोड़ के जरिए सत्ता शीर्ष तक पहुंचते देखा गया है। भाजपा की यह रणनीति अब जीत सुनिश्चित करने के लिए नहीं है बल्कि स्वयं को और अधिक मजबूत बनाने के लिए ही है। और इसका उसे लगातार फायदा भी हो रहा है। इस बार लोकसभा चुनाव में वह जीत की जिस हैट्रिक की तैयारी कर रही है उससे पहले उसने फिर दूसरे राजनीतिक दलों के लिए अपने दरवाजे इसलिए खोले गए हैं क्योंकि उसका मुकाबला अब किसी एक दल से नहीं अपितु उसे इंडिया गठबंधन से है जिसमें कई ऐसे दल भी शामिल है जो कभी बीजेपी के एनडीए गठबंधन के साथी थे।