बात अमीर—गरीब के बीच फासले की

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देश की स्वतंत्रता से लेकर अब तक लगातार हमारी सरकारों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा आर्थिक समानता की बात कही जाती रही है। विकसित राष्ट्र की बात जो इन दिनों हर किसी के जुबान पर है तथा 2024 के लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा सबसे अहम मुद्दों में शामिल हो चुका है ऐसे में यह समझना बहुत जरूरी है कि क्या आर्थिक समानता के बिना अथवा यह कहे कि अमीर—गरीब के बीच की खाई को पाटे बिना कोई देश भला कैसे विकसित देश कहा जा सकता है। इस संदर्भ में दो महत्वपूर्ण बातें हैं पहली बात है देश की आर्थिक व सामाजिक संपन्नता और दूसरी बात है आर्थिक समानता। जहां तक आर्थिक प्रगति और संपनता की बात है तो निश्चित तौर पर देशवासियों की आर्थिक स्थिति में निरंतर सुधार हुआ है। लेकिन आर्थिक समानता की बात अगर कोई करता है तो वह किसी सफेद झूठ की तरह ही है। आज भी देश के 10 फीसदी लोगों का देश की अगर 50 फीसदी संपत्ति पर कब्जा है तो भला यह कैसी आर्थिक समानता है। अभी हाल ही में स्टेट बैंक द्वारा अपने सर्वे में देश में आर्थिक असमानता घटने की बात कही गई है। इससे यह तो माना जा सकता है कि देश के कुछ गरीब और सामान्य वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हुई है। लेकिन स्टेट बैंक की इस रिपोर्ट में यह कहा जाना कि देश में 5 से 10 लाख सालाना कमाने वालों की संख्या में 295 फीसदी और 10 से 25 लाख सालाना कमाने वालों की संख्या में 291 फीसदी तथा एक करोड़ कमाने वालों की संख्या बीते 10 साल में 23 से बढ़कर 136 हो गई है सवाल यह आइटीआर भरने वालों की संख्या या फिर आयकर दाताओं की बढ़ती संख्या के आधार पर ही देश के लोगों की आर्थिक स्थिति का अंदाजा लग सकता है, और रिपोर्ट में यह क्यों नहीं बताया गया है की 10 से 20 हजार महीना कमाने वालों की संख्या कितनी कम या ज्यादा हुई। देश का वह मजदूर तबका जिसकी दिहाड़ी 500 और 700 रूपये प्रतिदिन है उसमें भी उसे हर रोज तो काम मिल नहीं जाता है। उसका गुजारा इस बढ़ती महंगाई के दौर में कैसे हो रहा है यह भी सर्वे का विषय है। देश की केंद्र सरकार 80 करोड लोगों को अगर मुफ्त का राशन सप्लाई कर रही है तो उसे इसकी जरूरत क्यों पड़ रही है? 80 करोड़ का मतलब होता है देश की 60 फीसदी आबादी। ऐसी स्थिति जब देश युवा रोजगार की तलाश में भटक रहे हो और आदि से अधिक आबादी सरकार के मुफ्त के राशन पर आश्रित हो आप भला कैसे आर्थिक समानता की बात कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात का दावा करते हैं कि उनकी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में 13.10 करोड लोगों को गरीबों की रेखा से ऊपर लाया गया है। सवाल यह है कि आज वर्तमान में देश के कितने लोग गरीबों की रेखा से नीचे जीने पर मजबूर है। किसान खासतौर पर वह छोटे किसान जिनकी आय दोगुना करने की गारंटी सरकार देती रही है इन 10 सालों में और भी अधिक गरीब हो गए हैं। वह मजदूर जिन्हें रोज कुआं खोदकर पानी पीना होता है वह और भी अधिक गरीब हो चुके हैं। सरकार द्वारा यह तो बताया जाता है कि इस विभाग में इतनी नौकरियां दी जाएगी लेकिन 10 सालों में कितनी नौकरियां दी गई और बेरोजगारों की संख्या में कितनी वृद्धि हुई यह नहीं बताया जाता है। देश का नौजवान बेरोजगार है जिनके पास कोई काम धधंा नहीं है प्राइवेट सेक्टर में काम करने वालों वह लोग जो 8—10 हजार की नौकरी कर रहे हैं उनसे अगर इस आर्थिक समानता की सच्चाई पूछिए तो आपको पता चलेगा कि गरीब व बेरोजगार किस हाल में है। जहां तक बात है अमीरों की है तो उनकी संख्या अगर 36 से बढ़कर 136 हो गई है तो यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। विकसित भारत का नारा एक शगुफा से ज्यादा कुछ भी नहीं है। जब तक देश का किसान और गांव का मजदूर संपन्न होगा तब तक आर्थिक समानता की बात सिर्फ बेमानी है। जिसके बिना विकसित भारत की कल्पना भी सिर्फ कल्पना ही कहीं जा सकती है।

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