हंगामे का जिम्मेदार कौन?

0
921


विगत 13 दिसंबर को संसद की सुरक्षा में सेंध के मुद्दे को लेकर संसद के दोनों सदनों में हंगामा जारी है। 14 सांसदों को पूर्व समय में निलंबित किए जाने के बाद बीते कल लोकसभा और राज्यसभा के 78 और सांसदों को भी निलम्बित किए जाने के बाद अब यह संख्या 92 हो चुकी है। देश के इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में निलंबन की कार्रवाई की गई है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि 13 दिसंबर को कुछ लोगों ने संसद पर हमला किया था अब सरकार संसद और लोकतंत्र पर हमला कर रही है। विपक्ष पहले इस अति संवेदनशील मुद्दे पर गृहमंत्री के संसद में आने और सवालों का जवाब देने की मांग कर रहा था। अब विपक्ष प्रधानमंत्री से बयान देने की मांग कर रहा है। इस पूरे प्रकरण में अहम मुद्दा यह है कि जब विपक्ष सरकार से अपनी बात कहना चाहता है और अपने कुछ सवालों का जवाब मांग रहा है तो गृहमंत्री शाह और पीएम मोदी उनके सवालों का जवाब देने को क्या तैयार नहीं है? विपक्षी सांसद हंगामा न करें, इसे रोकने के लिए सबसे आसान तरीका यही है कि गृहमंत्री सदन में आए और अपनी बात रखें। लेकिन शायद उनके पास कोई संतोषजनक जवाब देने के लिए नहीं है। या फिर वह इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि इस मामले की जांच में ऐसा कुछ हाथ लग जाए जिसे बताकर वह विपक्ष की बोलती बंद कर सकें। विपक्ष पर यह आरोप लगाकर कि वह हर मुद्दे पर राजनीति कर रहा है या फिर विपक्ष के हंगामा को लोकतंत्र और संसद की गरिमा के खिलाफ बताकर उनके खिलाफ निलंबन जैसी कार्रवाई कर उन्हें चुप कराने की कोशिश कर रहा है। दोनों को ही उचित नहीं ठहराया जा सकता है। विपक्ष है तो वह सरकार से किसी भी मुद्दे पर सवाल पूछेगा ही। अब जब 92 सांसदों को निलंबित किया जा चुका है तब यह संख्या कोई कम नहीं है हो सकता है आज या फिर कल और भी कुछ सांसदों का निलंबन किया जाए। ऐसे में सदन का शीतकालीन सत्र बिना विपक्ष के चलेगा। सदन में लाये जाने वाले प्रस्तावों को बिना किसी चर्चा के पास कराया जाना भी क्या लोकतंत्र के अनुरूप होगा? यही कारण है कि इस तरह की कार्यवाही के बाद विपक्ष सत्ता पक्ष पर तानाशाही का आरोप लगाते हुए कह रहा है कि भाजपा विपक्ष विहीन सरकार चाहती है। खड़गे अगर इसे लोकतंत्र पर हमला बता रहे हैं तो उसका यही आधार है। भारत की संसद में इस शीतकालीन सत्र के दौरान जो कुछ भी घटित हो रहा है चाहे वह संसद में घुसपैठ का मामला हो या फिर विपक्ष के हंगामे का अथवा सांसदों को निलंबित करने का और बिना चर्चा और बिना विपक्ष के विधेयकों को पारित किए जाने का कुछ भी संवैधानिक परंपराओं और लोकतंत्र की मूल भावना के दृष्टिकोण से अच्छा नहीं कहा जा सकता है। सदन की कार्रवाई को बाधित करने का आरोप भले ही हमेशा ही विपक्ष पर लगाया जाता है लेकिन सदन को सुचारू और व्यवस्थित रूप से संचालित किए जाने की जिम्मेदारी सरकार की ही होती है अगर संसद में हंगामा हो रहा है या फिर सदन की कार्यवाही शांतिपूर्वक तरीके से नहीं चल पा रही है तो इसके लिए विपक्ष जितना जिम्मेदार है उससे कहीं अधिक जिम्मेदार सत्ता पक्ष भी है। रही बात संसद में हुई घुसपैठ और सुरक्षा में चूक की तो इसके लिए भी सरकार ही जिम्मेदार है विपक्ष नहीं। यह कोई मामूली चूक भी नहीं मानी जा सकती है जिस तरह दो युवक संसद की कार्रवाई के दौरान लोकसभा सदन तक पहुंच गए और उनके द्वारा नारेबाजी कर धुंए वाले केन फोड़े गए उनकी जगह अगर आतंकी रहे होते तो इसके परिणाम क्या हो सकते थे इसकी कल्पना किया जाना भी संभव नहीं है। यह बात अलग है कि सत्ता पक्ष द्वारा इस अत्यंत गंभीर मसले को इतने हल्के में लिया जा रहा है या हल्के में लेने का दिखावा किया जा रहा है उसे भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है भले ही इसके पीछे भी सरकार की मंशा विपक्ष को शांत रखने की ही क्यों न हो। मणिपुर हिंसा मामले में भी हम सरकार का ऐसा ही रुख देख चुके हैं जिसके कारण विपक्ष को सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़ा। ऐसी स्थितियां किसी भी लोकतंत्र के लिए सही नहीं मानी जा सकती हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here