पांच राज्यों की विधानसभाओं के लिए मतदान संपन्न हो चुका है अब सभी की नजरे चुनावी नतीजों पर लगी हुई है। 3 दिसंबर को होने वाली मतगणना के बाद यह साफ हो जाएगा कि किस राज्य में किसकी सरकार बनेगी। चुनाव नतीजे से पहले तमाम न्यूज एजेंसियों और टीवी चैनलों द्वारा किए गए एग्जिट पोल के सर्वे भी सार्वजनिक हो चुके हैं। भले ही एग्जिट पोल के नतीजे कई बार जमीनी हकीकत से बिल्कुल विपरीत रहते हैं लेकिन फिर भी इन एग्जिट पोल के नतीजे को लेकर खास कर नेताओं का उत्साह कभी कम होता नहीं दिखा है। लेकिन इस बार तमाम एग्जिट पोल के नतीजे एक दूसरे के खिलाफ रुझान दिखाते दिख रहे हैं इसलिए नेताओं की धड़कनें और भी अधिक बढ़ी हुई है। मोटे तौर पर एक बात जरूर साफ दिख रही है कि यह चुनावी नतीजे न तो एक तरफ रहने वाले हैं और न किसी भी दल विशेष के लिए इतनी आसान रहने वाले हैं कि वह सीना ठोक कर सत्ता में आने की दावेदारी कर सके। अगर राज्यवार इसका आकलन किया जाए तो मध्य प्रदेश जहां विधानसभा की सर्वाधिक 230 सीटे हैं वहां भाजपा और कांग्रेस के बीच संघर्षपूर्ण मुकाबला है। अशोक गहलोत भले ही राजस्थान में एक बार फिर कांग्रेस और एक बार फिर भाजपा की सरकार गठन के मिथक को तोड़ने की बात कर रहे हो लेकिन भाजपा यहां उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा सकती है। जिसका एक बड़ा कारण यहां सूबाई नेताओं के बीच सालों से चले आ रहे टकराव को माना जा सकता है। मध्य प्रदेश में न तो शिवराज चौहान की राह आसान दिख रही है और न राजस्थान में अशोक गहलोत की वापसी संभव लग रही है दोनों ही राज्य में एग्जिट पोल के नतीजे भी यही दर्शा रहे हैं कि इन बड़े राज्यों में मामूली अंतर से ही जीत हार का फैसला होगा। 90 सीटों वाले छत्तीसगढ़ के बारे में जरूर यह एग्जिट पोल यह तय करते दिख रहे हैं कि भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस एक बार फिर वापसी करेगी। जहां तक तेलंगाना और मिजोरम की बात है तो एग्जिट पोल यहंा किसी को भी स्पष्ट बहुमत मिलने के संकेत नहीं दे रहे हैं तथा त्रिशंकु सरकार गठन वाला मतदान दर्शा रहे हैं। चुनावों के असली नतीजों के लिए अब अधिक लंबा इंतजार भी नहीं करना है परसों 3 दिसंबर की शाम तक यह साफ हो जाएगा कि इन पांच राज्यों में किस राजनीतिक दल की क्या स्थिति रहती है। केंद्रीय सत्ता में भाजपा की मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बनने के बाद देश की राजनीति की दिशा और दशा में भारी बदलाव आया है। चुनाव में भले ही जनता द्वारा किसी भी दल को सत्ता में रहने का जनादेश दिया हो लेकिन सत्ता के चीर हरण के अनेक उदाहरण हमारे सामने आ चुके हैं। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में हुए सत्ता परिवर्तन इसके बड़े उदाहरण हैं अब सिर्फ जनता के जनादेश पर सत्ता का हस्तांतरण नहीं होता है। एग्जिट पोल जैसा संकेत दे रहे हैं उन्हें देखकर यह लगता है कि अगर इन राज्यों में जीत हार का अंतर अधिक नहीं रहता है तो सत्ता के लिए होने वाली जोड़—तोड़ किसी को भी सत्ता शीर्ष पर ला सकती है और किसी को भी सत्ता शीर्ष से उतार सकती है। वर्तमान समय में हुए इन राज्यों को भले ही 2024 के आम चुनाव के दृष्टिकोण से लिटमस टेस्ट माना जा रहा था लेकिन इन पांच राज्यों के चुनावी नतीजे किसी भी दल के लिए बहुत उत्साहवर्धक रहते नहीं दिख रहे हैं। इन चुनावों के लिए एग्जिट पोल करने वालों की भी यही राय है कि हर चुनाव की तरह इन चुनाव में भी जो साइलेंट वोटर हैं उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। देखना है की परसों आने वाले नतीजे किसे खुश करने वाले रहते हैं और किसे निराश करते हैं वैसे भी लोकसभा चुनाव का मिजाज विधानसभा चुनाव से अलग होता है।