अनिश्चिता मेंं फसा रेस्क्यू

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सिलक्यारा सुरंग हादसे को आज 14 दिन का समय बीत चुका है। सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों की जिंदगी दांव पर लगी हुई है। अब तक इन्हें बाहर निकालने के जो भी प्रयास किए गए हैं उनका कोई नतीजा अब तक निकलता नहीं दिख रहा है। यहां चलाए जा रहे रेस्क्यू अभियान में देश—विदेश के तमाम विशेषज्ञ बीते 14 दिनों से लगातार काम कर रहे हैं। सुरंग से मलवा बाहर निकालने का प्लान ए फेल होने के बाद प्लान बी पर काम शुरू हुआ जिसमें आगर मशीन से मलबे को निकाल कर 900 एमएम व्यास के पाइप डाल कर मजदूरों तक पहुंचने की कोशिश की गई लेकिन यह कोशिश 22 मीटर पर जाकर अटक गई छोटी क्षमता वाली मशीन के असफल होने पर उड़ीसा और गुजरात से हैवी अमेरिकन मशीन लाई गई जिसके कारण चार—पांच दिन काम वही थमा रहा जहां था। इस हैवी अमेरिकन मशीन से काम शुरू किया तो यह उम्मीद जागी कि शायद यह मिशन कामयाब हो जाएगा लेकिन बीते चार दिनों से काम आगे नहीं बढ़ पा रहा है। 48 मीटर पर काम अटकने के बाद 3 दिन से हर संभव कोशिश के बाद भी 50 मीटर से आगे पाइप नहीं बढ़ सके हैं। इन तीन दिनों में स्थिति कभी दो कदम आगे तो चार कदम पीछे वाली ही बनी हुई है। हर रोज सुबह को बताया जाता है कि आज किसी भी समय मिशन सिलक्यारा पूरा कर लिया जाएगा और देर रात तक फिर यही सुनने को मिलता है कि आगर मशीन के रास्ते में ठोस धातु आने के कारण मशीन आगे नहीं बढ़ पा रही है या फिर उसके ब्लेड खराब हो गए हैं अथवा प्लेटफार्म का बैलेंस खराब हो गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जो बीते तीन दिनों से इस उम्मीद में यहां कैंप किए हुए थे अब वह भी वापस लौट आए हैं। तीन दिनों से अभियान पूरा होने की संभावनाओं के मद्देनजर जो एनडीआरएफ के जवान श्रमिकों को बाहर लाने के लिए मुस्तैदी से खड़े थे उन्हें भी हटा लिया गया है। जो 40 एम्बुलेंस का काफिला था जिन्हें तुरंत मजदूरों को अस्पताल ले जाने के लिए अलर्ट मोड पर खड़ा किया गया था उसकी भी जरूरत नहीं रह गई है। बीती रात आगर मशीन का यह प्लान बी भी अब कामयाबी के करीब जाकर थम गया है अब विशेषज्ञों का कहना है कि जो 10 मीटर की दूरी शेष बची है उसे मैनुअली तरीके से काम करके आगे बढ़ा जाएगा। सवाल यह है कि जब हेवी मशीनरी इस 10 मीटर के दायरे को पार करने में बीते 4 दिनों से नाकाम साबित हो रही है वह काम अगर मैन्युअली किया जाएगा तो उसमें कितना समय लगेगा। अब इस हादसे को 14 दिन का समय बीत चुका है गनीमत यह है कि सुरंग में खाने—पीने का सामान और ऑक्सीजन पहुंच रही है और जो मजदूर अंदर फंसे हैं वह सामूहिक रूप से एक दूसरे का हौसला बढ़ाए हुए हैं लेकिन ऐसी स्थिति में कितने समय तक उनके जीवन की सुरक्षा संभव है। इन 41 जिंदगियों को बचाने के लिए जो रेस्क्यू अभियान चलाया जा रहा है उसमें जुटे लोग भी 14 दिनों की हाड़ तोड़ मेहनत के बाद थक चुके हैं जो एक स्वाभाविक बात है। इस पूरे मिशन पर होने वाले खर्च की तो बात छोड़ ही दीजिए। लेकिन बात इन श्रमिकों की जान व उनके परिजनों के इंतजार की है जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है, उसे यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता है। उनकी मानसिक वेदना और स्थिति का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है भले ही पीएमओ द्वारा इस दुनिया के सबसे बड़े रेस्क्यू अभियान की कमान खुद संभाली जा रही हो और एक साथ पांच प्लान पर काम किया जा रहा हो लेकिन अब यह मिशन सिलक्यारा उस स्टेज पर पहुंच गया है जो सरकार और आपदा राहत प्रबंधन और कार्य कौशल पर बड़े सवाल खड़े करता है अगर यह अभियान आने वाले दो एक दिन में पूरा नहीं हो पाता है तो इस मिशन पर कई तरह के सवाल उठना भी लाजमी है। इन 14 दिनों में सिलक्यारा में क्या—क्या हुआ और क्या हो रहा है? इस पर देश और दुनिया की निगाहें टिकी हुई है। अब प्रार्थनाओं का दौर भी जारी है लोग उम्मीद कर रहे हैं कि कोई चमत्कार जरूर होगा और यह 41 जिंदगियां अवश्य बच पाएंगी।

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