सिलक्यारा टनल में बीते 200 घंटे से फंसे श्रमिकों को बचाने के लिए चलाए जा रहे मिशन जिंदगी अभियान की कमान पीएमओ द्वारा संभाले जाने के बाद अब युद्ध स्तर पर काम जारी है। इस अभियान के प्रथम एक सप्ताह में किए गए कई प्रयोगों के फेल हो जाने के बाद अब एक साथ पांच प्लान पर काम किया जा रहा है। इससे पूर्व सुरंग की निर्माणदायी कंपनी तथा बचाव और राहत टीमों द्वारा प्लान ए, प्लान बी और प्लांट सी एक के बाद एक नए प्रयोग किए जाने के कारण पूरे एक सप्ताह का समय जिस तरह से बर्बाद किया गया उसके परिणाम स्वरुप अब इन श्रमिकों की जान का खतरा लगातार बढ़ता गया है। खास बात यह है कि इस अभियान की सही जानकारी को छिपाये जाने और हर रोज यह भरोसा दिलाये जाने कि वह कामयाबी की तरफ बढ़ रहे हैं, इस संकट को अधिक बढ़ा दिया गया है। किसी भी आपदा राहत कार्य में इस तरह की लापरवाही अत्यंत ही नुकसानदायक हो सकती है। इन मजदूरों ने बीते 9 दिन किस तरह से गुजारे हैं इसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता है। मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों की आवाजाही के बीच एक सप्ताह तक जिस तरह से यह रेस्क्यू अभियान चलाया गया वह बेहद ही लापरवाही भरा रहा है। ऐसा करते हैं, वैसा करते हैं अगर ऐसा नहीं होगा तो फिर वैसा करेंगे के बीच इस अभियान के दौरान कई बार एक—एक दिन या दो—दो दिन तक काम का रुके रहना अत्यंत ही अफसोस जनक है। ऐसे मुश्किल और चुनौती पूर्ण अभियानों में सभी संभावित विकल्पों पर एक साथ काम किए जाने की जरूरत होती है। फिलहाल जिन पांच प्लान पर एक साथ अलग—अलग टीमें काम कर रही हैं उनमें से कोई भी टीम सबसे पहले कामयाब हो सकती है इसमें भले ही अब चार दिन का समय लगे या 6 दिन का लेकिन काम रूकेगा एक दिन भी नहीं अगर यही प्रयास पहले दिन से किए गए होते तो अब तक कब के यह मजदूर सकुशल बाहर आ गए होते जिनकी अब जान पर बन चुकी है। इस हादसे का जो प्रथम दृष्टया कारण सामने आया है वह निर्माण कार्य में कंपनी द्वारा कर्मचारियों की सुरक्षा में की जाने वाली लापरवाही और घटिया निर्माण व तय मानकों के अंतर्गत काम न किया जाना ही माना जा रहा है लेकिन पहाड़ की संवेदनशीलता और उसकी वहन क्षमता को जांचे परखे बिना किए जाने वाले निर्माण कार्य भी इसका एक अहम कारण है। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पहाड़ पर जिस तरह से विकास कार्यों के नाम पर पेड़ों के कटान और पहाड़ का सीना चीरने के लिए विस्फोटको का इस्तेमाल किया जा रहा है उसने पहाड़ के मूल स्वरूप को ही बिगाड़ कर रख दिया है। विकास की इस अंधी दौड़ में प्रकृति और पहाड़ का संतुलन लगातार बिगड़ता जा रहा है जिसके परिणाम स्वरुप कहीं पहाड़ धसने की तो कहीं पहाड़ों के दरकने की घटनाएं अब विकास पर भारी पड़ती जा रही हैं वहीं मानव जीवन की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े कर रही हैं। चार धाम ऑल वेदर रोड की बात हो या फिर अन्य किसी भी विकास परियोजना की। पहाड़ों की कटिंग और अन्य कारणों से जो मलवा निकल रहा है उसका निस्तारण तक समुचित तरीके से नहीं किया जा रहा है इस मलवे को नदी के प्रवाह क्षेत्र में धकेला जा रहा है जिससे उनकी प्रवाह गति तथा दिशा बदल रही है। जहां तक सुरंग में फंसे लोगों के जीवन रक्षा की बात है उसका सही पता इस मिशन जिंदगी के पूरा होने पर ही चल सकेगा कि हम कितने सफल हो सके और कितने असफल रहे लेकिन सरकारों को इससे सबक लेने की जरूरत जरूर है।