महिलाओं के सम्मान का सवाल

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उन लोगों की सोच को धिक्कार है जो देश की महिला पहलवानों की इंसाफ की लड़ाई को राजनीति से प्रेरित आंदोलन बता रहे हैं। क्या भारतीय संस्कृति और सभ्यता का स्तर कभी इतना नीचा गिर सकता है कि देश की बेटियां किसी व्यक्ति या दल को राजनीतिक लाभ दिलाने के लिए सामूहिक रूप से किसी पर चरित्र हनन का आरोप लगाकर अपनी इज्जत आबरू का तमाशा बना सकती है? यह सवाल उन सभी के लिए सोचनीय है जो अपनी राजनीतिक साख बचाने के लिए इस तरह की घटिया सोच का प्रचार कर रहे हैं। जिस देश की बेटियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा के दम पर देश को मान सम्मान और गौरव दिलाने का काम किया उनके साथ शासन—प्रशासन के शीर्ष पर बैठे नेताओं और अधिकारियों का जिस तरह का दमनात्मक और संवेदनहीन रवैया देखने को मिला है वह सामाजिक शर्म की बात है। कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृज भूषण सिंह जो भाजपा के बाहुबली सांसद भी हैं उन पर अगर यौन शोषण का आरोप महिला पहलवानों द्वारा लगाया जा रहा है तो उनकी निष्पक्ष जांच की जिम्मेवारी क्यों कोई लेने को तैयार नहीं है? अगर महिला पहलवानों ने मिथ्या आरोप लगाए हैं तो उनकी जांच कराओ और उन्हें जेल भिजवा दो। क्यों न्याय की मांग करने वाली इन बेटियों को पुलिस वाले सड़कों पर घसीट रहे हैं? क्यों उनके साथ आए दिन धक्का—मुक्की की जा रही है क्यों उन्हें शांतिपूर्ण आंदोलन से रोका जा रहा है यह हैरान करने वाली बात है कि जिस व्यक्ति पर यह बेटियां अपने यौन उत्पीड़न का आरोप लगा रही है वह संसद में बैठा है और न्याय की मांग करने को लेकर संसद घेराव करने वाली बेटियों को सड़कों पर घसीटा जा रहा है और नए संसद को नए युग का और बुलंद भारत का साक्षी बताकर जिस दिन का जिक्र इतिहास में दर्ज होने की बात देश के प्रधानमंत्री कर रहे हैं वह 28 मई देश के लिए गौरव नहीं शर्म का दिन था। अगर किसी भी आम आदमी द्वारा सरकार के खिलाफ बोलना या लिखना या न्याय के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन करना असंवैधानिक और अपराध है तो आज देश में लोकतंत्र की क्या स्थिति है? इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। कल यह महिला पहलवान अपने उन प्रशस्ति पत्रों व मैडल को अगर गंगा में प्रवाहित करने के लिए पहुंची है तो उनकी आंखों से छलकने वाले उनके दर्द को समझा जा सकता है। अच्छा हुआ कि भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत ने उन्हें ऐसा करने से रोक लिया लेकिन तमाम खाप पंचायतें और भारतीय किसान यूनियन तथा वह तमाम अन्य राजनीतिक दल जो अपने राजनीतिक लाभ के लिए इन बेटियों के समर्थन में आ रहे हैं क्या इन देश की बेटियों को न्याय दिला पाएंगे? राकेश टिकैत को अपने मेडल सौंपकर इन बेटियों ने अब उन पर न्याय दिलाने की जिम्मेदारी डाल दी है। सत्ता में बैठे लोग शायद अब किसी की कोई बात नहीं सुनना चाहते ऐसी स्थिति में तो कतई भी नहीं जो भाजपा या मोदी सरकार के खिलाफ हो। लेकिन एक बात सत्य है कि अगर इन महिला पहलवानों को इंसाफ नहीं मिला तो इसके दूरगामी परिणाम कतई भी अच्छे नहीं हो सकते हैं। किसान आंदोलन से लेकर अब महिला पहलवानों के इस आंदोलन तक सरकार की असंवेदनशीलता सत्ता के अहंकार का ही प्रतीक है लेकिन इस मामले पर पीएम मोदी की चुप्पी भी कम आश्चर्यजनक नहीं है अपने मन की बात में देश दुनिया की छोटी—छोटी बातों और घटनाओं को उद्धत करने वाले पीएम मोदी को संसद की नाक के नीचे घटने वाले इस घटनाक्रम पर संज्ञान लेने की जरूरत है क्योंकि इस पर देशभर ही नहीं पूरे विश्व की नजरें लगी हुई है यह आंदोलन अब महिलाओं के सम्मान का सवाल बन चुका है।

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