कठिन संक्रमण काल से गुजर रही देश की सबसे बड़ी और पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के नेता उदयपुर में आयोजित चिंतन शिविर में उन कारणों को ढूंढने पर विचार विमर्श करते दिखे जिनकी वजह से पार्टी का अधोपतन हुआ है। यह अच्छी बात है, क्योंकि जब तक मर्ज का कारण समझ नहीं आएगा उसका निवारण भी संभव नहीं है लेकिन इस चिंतन शिविर में कांग्रेस ईमानदारी से अपने विमर्श करती दिखी? यह सवाल अब भी सवाल ही बना हुआ है। कांग्रेस दरअसल अपनी गलतियों के मूल तक पहुंचना ही नहीं चाहती है। पुरानी कांग्रेस और कांग्रेसियों की अपनी एक राष्ट्रीय और सामाजिक तथा राजनीतिक विचारधारा होती थी। लेकिन सत्ता से बाहर होते ही कांग्रेसी नेताओं ने अपनी उस विचारधारा को तिलांजलि दे दी जो उसकी आत्मा थी। देश में अटल बिहारी वाजपेई के समय में कांग्रेस ने एकला चलो के सिद्धांत को त्याग कर गठबंधन की राजनीति को स्वीकार कर भले ही यूपीए के जरिए सत्ता हासिल कर ली सही लेकिन इस गठबंधन की राजनीति का हिस्सा बनते ही कांग्रेस राजनीतिक पार्टी नहीं विचार है, से विचार का पूर्णतया लोप हो गया और कांग्रेस सिर्फ एक राजनीतिक पार्टी भर रह गई। जिसकी अपनी कोई विचारधारा नहीं होती। सत्ता के पीछे की दौड़ में कांग्रेस ठीक ऐसे बहती चली गई जैसे नदी में तिनका। भाजपा की धार्मिक और राष्ट्रभक्ति की राजनीति का विरोध करते—करते कांग्रेसी नेता कब मंदिरों और गुरुद्वारों में माथा टेकने और पूजा अर्चना करने पहुंच गए उन्हें पता ही नहीं चला। उदयपुर के चिंतन शिविर में कांग्रेसियों ने भाजपा के राष्ट्रवाद पर सवाल जरूर उठाए हैं लेकिन कांग्रेस जिस अंदाज में राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर विरोध जताती दिखी है उसने कांग्रेस को खलनायक की भूमिका में लाकर खड़ा कर दिया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस के वर्तमान नेता सच का प्रस्तुतीकरण ऐसी भाषा श्ौली और अंदाज में करते हैं कि उनका सच भी झूठ जैसा लगे जबकि भाजपा नेता अगर किसी झूठ का भी मुजाहिरा करते हैं तो वह झूठ को भी सच साबित कर देते हैं। कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा एक ही साल में तो कमजोर नहीं हो गया है जिसमें कांग्रेस चाहे कितने ही क्रांतिकारी परिवर्तन कर ले बहुत जल्द उसे खड़ा कर पाना संभव नहीं होगा। कांग्रेस आज बिना सैनिकों वाली फौज जैसी है जहां सिर्फ आला अधिकारी हैं सैनिक एक भी नहीं है। बिना सैनिकों की फौज कैसे लड़ती है यह अभी यूपी में कांग्रेस ने देख लिया होगा जहां प्रियंका गांधी जैसी नेता को भी फ्लॉप साबित कर दिया गया। कांग्रेस सिर्फ तब कांग्रेस थी जब अन्य दल उसकी विचारधारा की नकल करते थे और कांग्रेस के पीछे चलते थे जब कांग्रेस ने दूसरों के पीछे चलना शुरू कर दिया तब कांग्रेस, कांग्रेस भला कैसे रह सकती थी। यह कांग्रेसी नेताओं को चिंतनीय है वह अपनी निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर कांग्रेस के लिए कब सोचना करेंगे। चुनाव के लिए पार्टी से मिलने वाले पैसे तक का बंदरबांट करने वाले कांग्रेसी कांग्रेस का कुछ भला कर पाएंगे अगर उदयपुर में चिंतन करने वाले कांग्रेसी ऐसा सोचते हैं तो यह उनका भ्रम ही कहा जा सकता है।