बेरोजगार मेलों का ढोल

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कोई भी दल या सरकार बहुत अधिक समय तक जनता को गुमराह करके या झूठे वायदे करके या झूठे सपने दिखा कर सत्ता में नहीं बना रह सकता है। राजनीतिक या नेता अगर यह सोचते हैं कि आज जो वायदे जनता से किए जा रहे हैं उन्हें आने वाले दिनों में लोग भूल जाएंगे या फिर वह लोगों के सामने नए मुद्दे उठाकर या नहीं सोच व दृष्टिकोण रखकर लोगों को गुमराह कर सकते हैं तो उनकी यह गलतफहमी ही है भले ही लोगों को देर से समझ जाए लेकिन जब उन्हें हकीकत समझ आती है तो वह किसी की भी सत्ता को उखाड़ फेंकने में एक पल की देरी भी नहीं लगाते हैं। कर्नाटक में भाजपा को मिली करारी शिकस्त इसका ताजा उदाहरण है। जिसने भाजपा के रणनीतिकारों और धुरंधर नेताओं को झकझोर कर रख दिया है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश भर में रोजगार मेले लगा रहे हैं। देश में 45 स्थानों पर लगाये जा रहे इन रोजगार मेलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्चुअली 71 हजार बेरोजगारों को नियुक्ति पत्र सौंप रहे हैं। उनके सिपहसालार बता रहे हैं कि अब तक देश भर में 2 लाख 88 हजार लोगों को नियुक्ति पत्र दिए जा चुके हैं तथा साल के अंत तक 10 लाख बेरोजगारों को नियुक्ति पत्र देने का लक्ष्य है। भाजपा के इन नेताओं को 2014 के लोकसभा के चुनाव को जरूर याद करना चाहिए जिसमें उन्होंने 10 लाख नौकरियां हर साल देने का वायदा बेरोजगारों से किया था भाजपा के नेता आज यह बताने से कतराते हैं कि 9 सालों में उन्होंने कितने लोगों को रोजगार दिया है। 2019 के चुनाव के समय यह मुद्दा उठा था तब अमित शाह जैसे नेताओं द्वारा कहा गया था कि पकौड़ा तलना और बेचना भी रोजगार है जिसे इन बेरोजगारों के जले पर नमक की तरह माना गया था। कुछ जगह तो बेरोजगार अपने प्रदर्शनों के दौरान पकोड़ियंा तलने के जरिए भाजपा को आईना दिखाने की कोशिश भी की गई लेकिन हिंदुत्व के घोड़े पर सवार भाजपा नेताओं को तब यह बात समझ नहीं आई। बात तो अभी भी उन्हें समझ नहीं आई है वरना वह युवाओं को रोजगार देने का ढोल नहीं पीट रहे होते उन्हें रोजगार दे रहे होते। देशभर में जहां भी जिस भी विभाग में किसी को भी नौकरी दी जा रही है उन सबको इकट्ठा करके उन्हें रोजगार मेले में नहीं लगाया जाता। इस सत्य को भी सभी जानते हैं कि आज अगर प्रधानमंत्री को रोजगार मेले लगाने की जरूरत पड़ी तो क्यों पड़ी? यह देश की राजनीति का नया भाजपा कल्चर है जहां बेरोजगारों को प्रधानमंत्री नियुक्ति पत्र बांट रहे हैं। शायद विश्व भर के किसी देश में ऐसा नहीं होता है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व यह युवाओं को भ्रमित करने का सिर्फ एक तरीका नहीं तो क्या है। भाजपा को यह ढोल बजाने की राजनीति अब बंद कर देनी चाहिए और ऐसे वायदों से बाज आना चाहिए जैसे वायदे 2014 व 2019 में किए गए थे। काला धन वापस लाएंगे और देश के हर गरीब के खाते में 20—20 लाख रुपए डालेंगे जैसे वायदों पर लोग आज भी सवाल उठाते हैं और आज उन्हें यह याद है कैसे भाजपा नेता इस सवाल से पीछा छुड़ाने के लिए यह कहते थे कि यह तो एक चुनावी शिगूफा था। सच यह है कि अब उनकी राजनीति शगुफों के बलबूते पर नहीं चल सकती है और न बजरंगबली उनकी नैया पार लगा सकते हैं। उन्हें देश की सबसे बड़ी समस्याओं भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगार पर ठोस पहल करनी ही पड़ेगी वरना जनता अब जवाब देने को तैयार होती दिख रही है।

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