कैसी पुलिस और कानून व्यवस्था?

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भारी पुलिस फोर्स और मीडिया कर्मियों की मौजूदगी में जिस तरह से जाने—माने कुख्यात माफिया अतीक और उसके भाई अशरफ को तीन युवकों द्वारा प्रयागराज में गोलियों से भून दिया गया वह हैरान करने वाला है अपितु जिस कानून व्यवस्था का दंभ हम भरते हैं और पुलिस व्यवस्था की बात करते हैं उस पर एक गंभीर सवाल खड़े करता है। फरवरी माह में प्रयागराज में उमेश पाल हत्याकांड के बाद शुरू हुआ माफिया और शासन—प्रशासन के बीच यह महासंग्राम कहां जाकर रुकेगा इसके बारे में अभी कुछ भी कह पाना मुश्किल है। उमेश पाल पर जब हमला हुआ था तब उनके साथ तैनात दो पुलिसकर्मियों की भी जान चली गई थी सारे हमलावरों की पहचान सीसीटीवी से उसी दिन हो गई थी उमेश पाल को यूपी पुलिस के दो अंगरक्षक भी नहीं बचा सके थे। अतीक और उसके भाई को जेल से प्रयागराज लाने व उसकी पेशी और रिमांड के दौरान भारी पुलिस बल की तैनाती भी उनकी हत्या होने से नहीं रोक सकी। ऐसे में एक आदमी भला कैसे इस बात का यकीन कर सकता है कि पुलिस किसी मुसीबत के समय उसकी रक्षा करेगी। 44 सेकंड और 18 गोलियां और काम तमाम। न उमेश पाल को बचाने के लिए पुलिस ने एक भी गोली चलाई न अतीक और अशरफ को बचाने के लिए। तीनों हत्यारोपी अगर खुद अपने हथियार फेंक कर सिलेंडर नहीं करते तो वह हत्या कर फरार भी हो सकते थे लेकिन सिलेंडर उनकी रणनीति व प्लान का ही हिस्सा था कि वह भागे नहीं। पुलिस की इससे बड़ी नाकामी भला और क्या हो सकती है। भले ही अब सरकार ने 18 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया हो और इसकी जांच के लिए आयोग गठित कर दिया हो। लेकिन योगी की कानून व्यवस्था इस हत्याकांड के कारण सवालों के घेरे में हैं। सवाल तो अतीक के बेटे असद व गुलाम के एनकाउंटर पर भी उठ रहे हैं जिसे पुलिस ने इससे 3 दिन पहले झांसी में अंजाम दिया है। यूपी पुलिस योगी शासनकाल में 189 एनकाउंटर कर चुकी है जिन्हें लेकर अब सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। सवाल यह है कि क्या कानून व्यवस्था के लिए एनकाउंटर जरूरी है। अगर पुलिस एनकाउंटर में बदमाशों को मार कर ही उन्हें सजा दी जा सकती है तो न्यायालयों की क्या जरूरत है? अतीक और अशरफ की हत्या के बाद आरोपियों द्वारा जय श्रीराम के नारे लगाने का क्या मकसद है? इस घटना के बाद अब अगर यूपी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों की सुरक्षा बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है तो यह इस माफिया व सरकार के बीच टकराव को धार्मिक रंग देने के कारण नहीं हो रहा है। बेलगाम सोशल मीडिया पर जिस तरह की बेतुकी कमेंट की जा रही है वह देश और समाज की प्रदूषित होती मानसिकता तो प्रदर्शित करती है जो देश की फिजाओं में सांप्रदायिकता का जहर घोल रही है इसके साथ ही वह भावी भविष्य के खतरों की भी घंटी है। यूपी में इस समय जो कुछ घटित हो रहा है वह इसलिए गलत है क्योंकि इसमें सभी कानूनी व संविधानिक तथा सामाजिक दायरों को लांघा जा है। एहतियात के तौर पर पूरी यूपी में हाई अलर्ट है धारा 144 लागू है। इससे सरकार की छवि भी खराब हो रही है सही मायनों में यह लड़ाई सड़कों पर नहीं न्यायालयों में लड़ी जानी चाहिए। जिससे पुलिस व अदालतों का भी इकबाल बना रहे।

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