भर्ती घोटालों की कथा अनंत

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उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली भर्ती परीक्षाओं में कितने व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार और धांधली हुई है इसका कोई आदि और अंत समझ नहीं आ रहा है। सरकार द्वारा इन भर्ती घोटालों की जांच हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में कराने का अनुरोध किया गया था जिसे हाईकोर्ट द्वारा ठुकरा दिया गया। हाईकोर्ट का मानना है कि यह साबित करना असंभव है कि इसके लिए कौन दोषी है। एसआईटी की जांच के बाद अब राज्य की 6 भर्तियों के लिए हुई परीक्षाओं को रद्द किया जा चुका है। और तो और उत्तराखंड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग द्वारा कराई गई भर्तियों में घोटाले उजागर होने के बाद सरकार ने लोक सेवा आयोग पर यह भरोसा जताते हुए कि शायद लोक सेवा आयोग नकल विहीन भर्ती परीक्षाएं संपन्न करा सकेगा उसे भर्ती परीक्षाओं की जिम्मेवारी सौंपी गई लेकिन उसके द्वारा कराई गई तीन परीक्षाओं, पटवारी लेखपाल भर्ती व जेई भर्ती परीक्षाओं के बाद एई भर्ती परीक्षा में भी धांधली की पुष्टि होने के बाद उसे भी रद्द किया जा चुका है। खास बात यह है कि 6 भर्ती परीक्षाओं के रद्द होने के बाद भी अभी यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। अभी तीन अन्य भर्ती परीक्षाएं संदेह के घेरे में आ चुकी हैं। धामी सरकार जिसके द्वारा इन भर्ती परीक्षाओं की जांच शुरू कराई गई वह भले ही इसे अपने बड़े कामों और उपलब्धियों में शुमार करते हुए यह कहा जा रहा हो कि उसने 80 से अधिक घोटाले बाजों को जेल की सलाखों के पीछे भेजा है तथा आरोपियों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने से लेकर उनकी संपत्तियों के जब्तीकरण का रास्ता साफ किया और एक ऐसा सख्त नकल विरोधी कानून लेकर आए कि कोई भी इस तरह का भ्रष्टाचार करने से पहले सौ बार सोचेगा। यही नहीं पेपर लीक मामलों में नकल कराने वाले और करने वाले दोनों पर कार्यवाही हो रही है। लेकिन सवाल आज भी यही बना हुआ है कि बीते 10—15 सालों में हुई भर्तियों में इस धांधली के कारण प्रदेश के जिन लाखों युवाओं का जीवन और कैरियर बर्बाद हुआ है क्या सरकार का कोई प्रयास उसकी भरपाई कर सकता है? एक दूसरा सवाल यह है कि क्या इन नकल माफियाओं को इसकी सजा मिल पाएगी? तीसरा सवाल यह है कि इस लाखों करोड़ के भ्रष्टाचार के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है? विपक्षी दलों के नेता भर्ती घोटालों की सीबीआई जांच की मांग करते रहे हैं लेकिन क्या सीबीआई भी इन मामलों की जांच ठीक से कर पाएगी क्योंकि इनके दायरे का कोई ओर छोर ही नहीं है। राज्य गठन से लेकर अब तक यूं तो राज्य में घपले घोटालों का लंबा इतिहास है अगर चंद नेताओं और अफसरों को छोड़ दें तो अधिकांश नेता व अफसर इन में संलिप्त रहे हैं। तमाम मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और विधायकों के नाम घोटालों से जुड़े हैं जिनके खिलाफ आज तक न तो कोई कार्रवाई हुई है न होने की संभावना है। सचिवालय और विधानसभा की बैकडोर भर्तियां इसका प्रमाण है। फिर वर्तमान में सरकार द्वारा एसआईटी से जो जांच कराई जा रही है वह क्या कभी किसी मुकाम तक पहुंच पाएगी। सच यही है कि अगर अगले 20 साल तक भी यह जांच चलती रही तब भी इसका अंत नहीं हो सकता है, एक लकीर है जिसे सांप निकल जाने के बाद पीटा जा रहा है। हां एक बात जरूर है अगर सरकार द्वारा यह सुनिश्चित कर दिया गया कि आने वाली भर्तियों में धांधली नहीं होगी तो यह सरकार के लिए एक बड़ी उपलब्धि और प्रदेश के युवाओं पर एक बड़ा एहसान होगा।

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