महंगाई की मार कब तक?

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बीते कल तेल कंपनियों द्वारा रसोई गैस की कीमतों में भारी इजाफा कर दिया गया है। 14.2 किलोग्राम वाले घरेलू रसोई गैस सिलेंडर के दाम 50 रूपये प्रति सिलेंडर बढ़ा दिए गए हैं वही 19 किलोग्राम वाले कमर्शियल सिलेंडर के दामों में रिकॉर्ड 350 रूपये की वृद्धि की गई है। इससे पहले कभी एक साथ इतनी ज्यादा मूल्य वृद्धि नहीं की गई है। घरेलू गैस सिलेंडर जो कल तक 1072 का मिलता था वह अब 1122 रुपए का और कमर्शियल सिलेंडर जो 1812.50 रुपए का मिलता था अब 2061.50 रुपए का हो गया है। भले ही अभी यह कहा जा रहा है कि यह मूल्य वृद्धि 8 माह बाद की गई है लेकिन यह सच है कि जब यूपीए सरकार के कार्यकाल में रसोई गैस सिलेंडर की कीमतें 450 के आसपास होती थी तब भाजपा के वह नेता जो आज केंद्रीय सत्ता में बैठे हैं वह 10—20 रूपये की मूल्य वृद्धि पर ट्टबहुत हुई महंगाई की मार अबकी बार भाजपा सरकार’ के नारे लगाया करते थे। अभी जब बीते दिनों रसोई गैस की कीमत 1हजार के पार पहुंची थी तब विपक्ष ने इसे लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन किए थे। एक खास बात यह है कि जब रसोई गैस सिलेंडर की कीमतें 850 व 900 रूपये के आसपास थी तो सरकार द्वारा रसोई गैस सिलेंडर पर 400 रूपये से अधिक की सब्सिडी दी जाती थी जिससे लोगों को गैस सिलेंडर की कीमत 500 रूपये के आसपास ही पड़ती थी लेकिन चाहे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें घटी या बढ़ी एक सोची—समझी नीति के तहत यह सब्सिडी अब सामान्य वर्ग के उपभोक्ताओं के लिए लगभग समाप्त कर दी गई है। उज्जवला योजना के तहत सरकार ने जिन साढ़े 9 करोड़ गरीबों को मुफ्त गैस कनेक्शन दिए गए थे अब उन्हें ही 200 रूपये प्रति सिलेंडर की सब्सिडी दी जा रही है। एक और खास बात यह है कि उज्जवला योजना के तहत मुफ्त कनेक्शन लेने वाले परिवारों में से 90 फीसदी परिवारों ने दोबारा अपने सिलेंडर भरवाये ही नहीं ऐसे में यह सब्सिडी किसे और कैसे मिल रही है इसकी एक अलग ही कहानी है। रसोई गैस हर छोटे—बड़े और अमीर—गरीब परिवार की एक मूल जरूरत है ग्रामीण क्षेत्रों के लोग जो 1000 या 11 सौ का सिलेंडर नहीं खरीद सकते वह आज भी लकड़ी और उपले के चूल्हे जलाकर ही गुजारा कर रहे हैं। जहां तक शहरी क्षेत्र की बात है तो जिन परिवारों की आमदनी 10—12 हजार रूपये प्रतिमाह की है उनके लिए सवा ग्यारह सौ एक गैस सिलेंडर के लिए खर्च करना कितना मुश्किल भरा काम है यह सिर्फ वही जान सकते हैं। ऐसा भी नहीं है कि ऐसे लोगों की आबादी बहुत कम है शहरी क्षेत्रों में आधी आबादी इसी दायरे में आती है और इस भीषण महंगाई के दौर में उनकी गुजर—बसर मुश्किल और चुनौतियाें भरी है। प्रधानमंत्री मोदी भले ही उज्जवला योजना से गरीब मां—बहनों को चूल्हे के धूंए से मुक्ति दिलाने की बात करते रहे हैं लेकिन बीते 8 सालों में आम आदमी की जेब पर जिस तरह से डाका डाला गया है उसने उसे गरीब से भी अधिक गरीब बना दिया है। कमर्शियल सिलेंडर की कीमत वृद्धि का असर भी उन उपभोक्ताओं के कंधों पर ही पड़ना है जिन्हें बाहर से खाना खाना उनकी मजबूरी है इस मूल्य वृद्धि के बाद होटल व रेस्टोरेटों में खाने पीने की वस्तुओं के दाम बढ़ने ही हैं।

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