भर्ती घोटालों पर लीपापोती?

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उत्तराखंड राज्य की भर्तियों में हुए घोटालों का मुद्दा कोई मामूली घटना नहीं है। राज्य गठन से लेकर 2022 तक जितनी भी भर्तियां हुई है उनका कोई भी माध्यम रहा हो या किसी भी आयोग और संस्था द्वारा की गई हो सभी भर्तियों में व्यापक स्तर पर धांधली हुई है और नकल माफिया, अधिकारियों और नेताओं के सिंडिकेट ने इन घोटालों को एक सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया है, इसमें अब किसी को भी संदेह नहीं रह गया है। यूकेएसएसएससी के एक पेपर लीक मामले की जांच के बाद जिस तरह से एक के बाद एक भर्ती घोटालों का खुलासा हुआ और लोक सेवा आयोग तक इसकी आंच पहुंची वह न सिर्फ हैरान करने वाली है बल्कि इस प्रदेश के युवाओं के साथ किए जाने वाला एक ऐसा छल और अपराध है जिसके लिए किसी को भी माफ नहीं किया जा सकता है। सूबे की वर्तमान भाजपा सरकार इन भर्ती घोटालों की एसआईटी जांच करा कर तथा 44 आरोपियों को गिरफ्तार कर व कुछ की संपत्ति पर हाथ डालकर तथा नकल विरोधी कानून लाकर जिस तरह से अपनी पीठ थपथपा रही है वह वास्तव में इस अत्यंत की बड़े और गंभीर मामले की लीपापोती के सिवाय कुछ नहीं है। यह हैरत वाली बात है कि अधीनस्थ चयन आयोग के घोटालों पर इस कार्यवाही के बाद सरकार ने जिस लोक सेवा आयोग को भर्तियों की जिम्मेदारी दी वहां भी पेपर लीक होने का मामला सामने आने की घटना ने सभी को चौंका दिया था। सचिवालय और विधानसभा में बैक डोर भर्तियों के मामले में सरकार ने जो आधी अधूरी कार्रवाई की वह भी यह बताने के लिए काफी है कि सत्ता में बैठे लोग इस मामले को किसी भी तरह दबाने में जुटे हुए हैं। मुख्यमंत्री प्रदेश के युवाओं को लाख समझाने का प्रयास करें कि उनके साथ अन्याय नहीं होने देंगे लेकिन क्या वह इन युवाओं को न्याय दिला पा रहे हैं? सरकार न तो उन्हें न्याय दिला पा रही है और न भर्तियों में घोटालों को रोक पा रही है। लेखपाल—पटवारी परीक्षा का पेपर लीक होना इसका उदाहरण है। एसआईटी ने जिन 44 लोगों को गिरफ्तार किया था उनमें से 22 जमानत पर छूटकर बाहर आ चुके हैं। बीते 15 सालों से जो युवा सरकारी नौकरी, प्रयासों के बाद भी नहीं पा सके और ओवरएज हो गए क्या उन्हें कोई सरकार न्याय दे सकती है। मजेदार बात यह है कि अब जो युवा इन घोटालों की सीबीआई से जांच की मांग को लेकर सड़कों पर सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं उन्हें पुलिस की लाठियां खानी पड़ रही है। सत्ता में बैठे लोग अब युवाओं के विरोध को सख्ती से दबाने के साथ—साथ विपक्ष पर यह आरोप लगा रहे हैं कि विपक्ष कांग्रेस के नेता इन युवाओं को भड़का रहे हैं। अगर यह सच भी है तो सरकार विपक्ष को यह मौका दे ही क्यों रही है? इन घोटालों की सीबीआई जांच क्यों कराने को तैयार नहीं है। इन घोटालों के तार सिर्फ नकल माफिया या चंद अधिकारियों तक ही सीमित नहीं है इन भर्ती घोटालों की अगर सीबीआई जांच की जाये तो न जाने कितने सफेदपोशोंं की सियासत स्वाह और स्याह हो जाएगी। बीते 9 फरवरी को छात्रों पर हुए लाठीचार्ज के बाद छात्रों और युवाओं का आंदोलन भले ही ठंडा पड़ गया हो और सरकार भी इस आग पर पानी डालने में जुटी हो लेकिन इसकी चिंगारी अभी भी सुलग रही है। यह युवा अभी भी सत्याग्रह व धरने पर हैं। शासन—प्रशासन कभी नरम तो कभी गरम रवैया अपनाकर इस मामले को ठंडे बस्ते में डालने के प्रयास में जुटा है। जो बेरोजगारों के साथ नाइंसाफी है। युवा और बेरोजगार न्याय की लड़ाई को किस मुकाम तक ले जा पाएंगे यह आने वाला समय ही बताएगा।

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