क्या कानून से रुकेगी नकल?

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बीते कल धामी सरकार ने कैबिनेट की बैठक में भर्ती परीक्षाओं में नकल रोकने पर गंभीर चिंतन मंथन किया है। मुख्यमंत्री धामी और उनकी सरकार द्वारा यूकेएसएसएससी की भर्ती परीक्षा में व्यापक धांधली (पेपर लीक) के मामले में जांच के आदेश और आरोपियों पर सख्त कार्रवाई के बाद यह सोचा जा रहा था कि संभवतया अब भर्तियों में इस तरह की धांधली नहीं होगी लेकिन अधीनस्थ चयन सेवा आयोग से भर्तियों का काम छीने जाने और उत्तराखंड लोक सेवा आयोग से भर्तियां कराने का फैसला भी अब गलत साबित हो गया तो ऐसे में इस गंभीर चुनौती से कैसे निपटा जाए यह सवाल और अधिक गंभीर हो गया है। भले ही सरकार और सीएम की मन इच्छा रही हो कि सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली भर्तियों मे शत प्रतिशत पारदर्शिता होनी चाहिए लेकिन जिन संस्थाओं और लोगों पर यह अति महत्वपूर्ण काम कराने की जिम्मेवारी है उनके भ्रष्ट आचरण को भला कोई कैसे जान समझ सकता है। दरअसल यह समस्या सिस्टम में व्याप्त उस भ्रष्टाचारी सोच से जुड़ी हुई है जहां नौकरशाह अवैध तरीके से कमाई करने को अपना अधिकार और काम माने बैठे हैं। अभी मसूरी में प्रदेश के नौकरशाहों को एक सेमिनार में बड़े—बड़े उपदेश दिए गए थे लेकिन उनके लिए यह सब कुछ एक पल्ले झाड़ कथा सुनने जैसा ही था। भ्रष्टाचार की यह बीमारी और भी गंभीर तब हो जाती है जब नौकरशाह और नेता मिलकर इस काम में जुटे हो। उत्तराखंड में आज जो भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है या जिन समस्याओं का सिस्टम शिकार है उसके लिए सिर्फ नौकरशाह जिम्मेदार नहीं है इस सूबे के नेता भी जिम्मेवार हैं। अब रही नकल को रोकने की बात तो सरकार इसके लिए एक कठोर कानून बनाने की बात कर रही है। जिसमें वह नकल माफिया पर नकेल कसने के लिए उम्र कैद की सजा या उसकी संपत्ति कुर्क करने और नकल करने वालों को सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली भर्तियों की परीक्षाओं से वंचित करने की व्यवस्था कर सकती है लेकिन सवाल यह है कि क्या नकल रोकने के लिए पहले कानून नहीं थे। वह कानून क्या इन नकलची अभ्यर्थियों अथवा नकल माफिया पर नकेल कस सके। देश में हत्या जैसी अपराधों की सजा फांसी और उम्र कैद है। 75 सालों में राज्य सरकारें और केंद्र सरकारों ने जो भी नया कानून बनाया या पुराने कानूनों में संसोधन किया क्या वह आज तक किसी अपराध को रोक सके है या अपराधों को कम कर सके हैं? सच यह है की अपराधियों को तो कानून का कोई भय होता ही नहीं है कानून का भय तो एक आम नागरिक या अच्छे लोगों तक ही सीमित है जिनके लिए वास्तव में कानून की कोई जरूरत ही नहीं होती है। तो अगर सीएम धामी और उनकी सरकार यह माने बैठी है कि सख्त कानून बनने के बाद फिर न कोई हाकम पैदा होगा न संजीव तो यह उनकी गलत सोच या भ्रम ही है। जिस सिस्टम को नौकरशाहों और नेताओं ने 75 सालों में खराब किया है उसे कुछ दिनों में या कुछ कानून बनाकर नहीं सुधारा जा सकता है। नकल माफिया के खिलाफ देश का सबसे सख्त कानून बनाने का काम करने वालों में सीएम धामी का नाम तो लिखा जा सकता है लेकिन इससे समस्या का समाधान संभव नहीं है इसके लिए सिस्टम को बदलने की जरूरत है जो आसान नहीं है। पीएम मोदी ने भी एक समय में कहा था कि न खाऊंगा न खाने दूंगा लेकिन सिस्टम के इस भ्रष्टाचार पर उन्होंने भी कितना काम किया और भ्रष्टाचार कितना खत्म हुआ हमारे सामने है। मोदी अभी यही कहते हैं और मानते हैं कि भ्रष्टाचार देश की सबसे बड़ी समस्या है।

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