संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक कल 15 नवंबर 2022 को विश्व की आबादी 8 अरब के पार हो गई। 2037 तक इस आबादी के 9 अरब के पार हो जाने की संभावना है। जनसंख्या के इस अध्ययन में भारत चीन को पछाड़कर विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने जा रहा है। भारत की यह बढ़ती आबादी उसके लिए वरदान है या अभिशाप इस मुद्दे पर चर्चा और चिंतन जरूरी है। विश्व की इस आबादी में 19.5 करोड़ आज भी ऐसी स्थिति में जी रहे हैं जिन्हें एक वक्त का भरपूर भोजन भी नसीब नहीं हो पा रहा है। जब यह आबादी 9 या 10 अरब होगी तब क्या स्थिति होगी इसका अनुमान सहज लगाया जा सकता है। भारत युवाओं का देश है, भारत की आबादी में 15 फीसदी तरुणावस्था वाले बच्चे हैं। भारत के पास संसाधनों और मैन पावर की कोई कमी नहीं है। जिसके दम पर भारत विश्व राष्ट्रों में एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाला देश बना हुआ है। लेकिन इसके साथ ही युवाओं को रोजगार देने और गरीबी की रेखा से नीचे जीने वालों की स्थिति में सुधार लाने व प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के साथ संतुलन बनाए रखना भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। सवा सौ करोड़ से अधिक आबादी वाले इस देश में आज 28 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हैं जिनको काम की तलाश है अगर इन बेरोजगार युवाओं से काम लिया जाए तो देश की जीडीपी में 15 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। हर साल देश के श्रम बाजार में 2.5 करोड़ नए युवा उतर रहे हैं जिनमें से सिर्फ पांच लाख को ही रोजगार मिल पा रहा है ऐसी स्थिति में जब 2060 में देश की आबादी पौने दो सौ करोड़ हो चुकी होगी तब बेरोजगारी की क्या स्थिति होगी? सोच कर ही पसीने छूट जाते हैं। सवाल यह भी है कि कोई भी देश अपने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किस सीमा तक कर सकता है। अत्यधिक संसाधन दोहन के नतीजों के बारे में भी हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं। आज विश्व में ग्लोबल वार्मिंग और पेयजल संकट को लेकर भविष्य की चिंताओं के जो बादल मंडरा रहे हैं आबादी बढ़ने के साथ यह संकट और अधिक विकराल हो जाएगा। विकासशील देशों से विकसित देश और आत्मनिर्भर भारत की जो दौड़ वर्तमान में लगाई जा रही है इसको मुकाम तक पहुंचाने के रास्ते में बढ़ती आबादी, गरीबी और बेरोजगारी तथा प्राकृतिक संसाधनों के दोहन जैसे अनेक अवरोध है। जिन पर गंभीरता से चिंतन मंथन की ही नहीं भावी भविष्य के लिए ठोस कार्य योजना बनाए जाने की जरूरत है। जनसंख्या असंतुलन की स्थिति आपकी तमाम विकास योजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी। अर्थशास्त्र का सिद्धांत है कि जब जनसंख्या और खाघान्न उत्पादन का असंतुलन बिगड़ता है तो प्राकृतिक आपदाएं ही उसे संतुलित करती हैं। जितनी खाघान्न क्षमता होगी जनसंख्या भी उससे अधिक नहीं हो सकती है। जरूरी है कि समय रहते इस बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण के कारगर उपाय किए जाएं जिससे खाघान्न और प्रकृति तथा जनसंख्या के बीच सामंजस्य और संतुलन बना रहे।