मल्लिकार्जुन खड़गे ने ऐसे समय में कांग्रेस की कमान संभाली है जब देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी अपने जीवन काल के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। कल राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के साथ ही मल्लिकार्जुन ने जो कुछ कहा वह इस बात का साफ संकेत है कि उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस किस दिशा में काम करेगी। उन्होंने भाजपा की उस सोच को पदभार ग्रहण करते ही चुनौती दी है जिसमें भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत की बात करती आई है। खड़गे का यह कहना कि वह भारतीय राजनीति को विपक्ष विहीन नहीं होने देंगे। उसका सीधा अर्थ यही है कि वह कांग्रेस को खत्म नहीं होने देंगे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि बीते एक दशक में कांग्रेस अवनीति की उस सीमा रेखा पर जाकर खड़ी हो गई है कि लोकसभा में उसका मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में भी टिके रहना चुनौतीपूर्ण हो चुका है तथा एक के बाद एक राज्य से उसकी सत्ता का दायरा भी लगातार सिमट ता जा रहा है। 2014 में जब भाजपा केंद्रीय सत्ता में आई थी तब कांग्रेस की दर्जन भर राज्यों में अपनी सरकारें थी जो अब महज 2 राज्यों तक सीमित होकर रह गई है। उल्लेखनीय बात यह है कि कांग्रेस के अलावा अन्य कोई भी ऐसा राष्ट्रीय दल नहीं है जो भाजपा का वर्तमान में मुकाबला कर सके। यही कारण है कि भाजपा के नीतिकार लगातार अपने एक सूत्रीय एजेंडे पर काम कर रहे हैं और वह एजेंडा है कांग्रेस मुक्त भारत। भाजपा के नेता इस बात को बखूबी जानते हैं कि अगर कांग्रेस को खत्म कर दिया तो बाकी सभी से लड़ना और उन्हें खत्म करना कोई मुश्किल चुनौती नहीं होगा। अगर भाजपा की सोच विपक्ष विहीन सरकार की है तो यह देश की संवैधानिक व्यवस्था और लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा ही कही जा सकती है। भाजपा के नीतिकारों को भी इस बात को अच्छे से समझने की जरूरत है कि जब उस कांग्रेस की, जिसने देश को इमरजेंसी जैसे हालात में धकेल दिया था उसका वजूद खत्म हो सकता है तो भारत के लोकतंत्र की मजबूती को कोई चुनौती नहीं दे सकता है। एक अन्य बात जो खड़गे ने कही है वह है पार्टी के पदाधिकारियों के 50 फीसदी पद पर 50 वर्ष से कम लोगों का होना। यह एक समय का चक्र है समय के साथ चल कर ही कोई व्यक्ति या संगठन अपना वजूद बनाए रख सकता है। राजनीतिक दल अगर अपनी भावी पीढ़ी के नेताओं को आने वाले कल के लिए तैयार नहीं करेंगे और बुजुर्ग नेता खुद रिटायरमेंट ले कर उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं देंगे तो ऐसी स्थिति में किसी पार्टी का भविष्य बेहतर नहीं हो सकता है। भाजपा भी अब तक लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को पकड़े बैठी रहती तो वह आज की भाजपा नहीं हो सकती थी। बसपा जिसका वजूद अब दिनों दिन कम होता जा रहा है, ने अगर अपनी दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेताओं को आगे बढ़ाया होता तो उसका भी हाल वह नहीं होता जो है। कांग्रेस के र्दुदिनों के पीछे भी एक अहम कारण यही रहा है। अपनी पार्टी में युवाओं को अपना भविष्य नजर नहीं आएगा तो वह उसे छोड़कर भाग ही जाएंगे और कांग्रेस में लंबे समय से यही हो रहा है। अब खड़गे युवाओं के लिए कैसी जमीन तैयार करते हैं यह आने वाला समय ही बताएगा। रही बात अब खड़गे वाली कांग्रेस की सोच की तो खड़गे के विचारों से यही संकेत मिलते हैं कि वह भी उसी सोच को लेकर आगे बढ़ने जा रहे हैं। जिसमें राहुल और सोनिया भाजपा पर समाज को तोड़ने, भय फैलाने और धर्म आधारित राजनीति करने के आरोप लगाती रही है। 2024 का चुनाव और उसके परिणाम यह तय करेंगे कि खड़गे कांग्रेस को किस ओर और किधर ले जा रहे हैं। वह कितनी आगे बढ़ी या पीछे चली गई। क्योंकि खड़गे के सामने कांग्रेस की आंतरिक चुनौतियां भी कम नहीं है।