सूबे के नेता चाहते ही नहीं सशक्त लोकायुक्त
राज्य में अविरल बह रही है भ्रष्टाचार की गंगा
देहरादून। बीते 10 सालों से अस्तित्व विहीन लोकायुक्त को क्या वर्तमान भाजपा सरकार अस्तित्व में ला सकेगी? उत्तराखंड की राजनीति के लिए यह एक यक्ष प्रश्न है? भाजपा और कांग्रेस की राजनीति की बलि चढ़ चुके लोकायुक्त के गठन को लेकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष द्वारा दिए गए बयान के बाद एक बार फिर चर्चा छिड़ गई।
2017 में सीएम की कुर्सी संभालने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बड़े जोर शोर के साथ भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करते हुए लोकायुक्त के गठन का प्रस्ताव विधानसभा में रखा गया था। लेकिन नाटकीय अंदाज में खुद सरकार द्वारा ही इसे विधानसभा की प्रवर समिति के हवाले कर दिया गया और आज तक वह प्रवर समिति के पास धूल फांक रहा है। अब भाजपा नेता राज्य में नए लोकायुक्त गठन की बात कर रहे हैं ऐसे में विपक्ष कांग्रेस के नेताओं द्वारा निशाना साधा जाना अति स्वाभाविक है। कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह का कहना है कि शगुफा छोड़ने में क्या कुछ खर्च होता है वह इसे भाजपा नेताओं का शगुफा बताते हुए कहते हैं कि भाजपा की पूर्ववर्ती सरकार ने 5 साल गुजार दिए जिसने 100 दिन में सरकार बनने पर लोकायुक्त गठन का वायदा जनता से किया था। अब भाजपा की दूसरी सरकार आ गई है पहले भाजपा नेता प्रवर समिति की रिपोर्ट तो तलाश ले। 6 साल में जो रिपोर्ट नहीं देखी गई उस पर यह लोकायुक्त गठन की बात कर रहे हैं। उनका कहना है कि न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी? भाजपा नेताओं का हाल भी कुछ ऐसा ही है।
अन्ना हजारे के आंदोलन से प्रभावित होकर तत्कालीन मुख्यमंत्री मेजर जनरल बीसी खंडूरी ने सबसे पहले लोकायुक्त गठन का प्रस्ताव लाकर खूब वाहवाही बटोरी थी। यह हकीकत है कि लोकायुक्त को लेकर सिर्फ खंडूरी द्वारा ही गंभीर प्रयास किए गए थे। लेकिन दुर्भाग्य बस इस बात का है कि इस पर राष्ट्रपति की मंजूरी से पहले राज्य में सरकार बदल गई और विजय बहुगुणा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा उनके बिल को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। कांग्रेस ने अपना संशोधित लोकायुक्त प्रस्ताव लाने की बात कही जरूर थी लेकिन इसके लिए कांग्रेस सरकार ने प्रयास कोई नहीं किया।
भाजपा या कांग्रेस के नेता लोकायुक्त को लेकर कितने संजीदा रहे हैं इसे त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस बयान से भी समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि जब राज्य में भ्रष्टाचार ही नहीं रहा तो लोकायुक्त की क्या जरूरत है। क्या सूबे के भाजपा या कांग्रेस के नेताओं से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ सशक्त लोकायुक्त ला सकते हैं? शायद नहीं। वरना 10 सालों से एमएम घिल्डियाल के पद छोड़ने के बाद से राज्य का लोकायुक्त अस्तित्व विहीन नहीं पड़ा होता। जबकि इसके कार्यालय में सवा 200 करोड़ सालाना खर्च भी हो रहा है, और राज्य में भ्रष्टाचार की गंगा भी अविरल बह रही है।