केरल के बाद उत्तराखंड देश का ऐसा दूसरा राज्य है जहां बीते दो दिनों से जारी बेमौसम बरसात ने सबसे अधिक कहर बरपाया है। खास बात यह है कि अभी इस आफत से राज्य को निजात नहीं मिल सकी है भले ही राजधानी दून और आसपास के क्षेत्रों में आज आसमान साफ दिख रहा हो लेकिन राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी भारी बारिश का क्रम जारी है और उससे होने वाली तबाही का आकार भी बढ़ता जा रहा है। अब तक इस आपदा के कारण आठ—दस लोगों की जान जा चुकी है तथा रामगढ़ के सुकना में निर्माणाधीन इमारत के मलबे में 9 मजदूरों के दब जाने की खबर है। बारिश का क्रम जारी होने के कारण इनका रेस्क्यू भी नहीं किया जा पा रहा है। राज्य की दर्जन भर प्रमुख सड़कों के साथ लगभग 150 सड़कें यातायात के लिए बंद हो चुकी हैं। तथा कई पुलों के टूट जाने से भारी नुकसान हुआ है। चार धाम यात्रा मार्गों व धामों पर हजारों यात्री फंसे हुए हैं और सड़के बंद होने से उनकी वापसी अभी संभव नहीं है रही बात किसानों को होने वाले नुकसान की तो अभी उसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि आसमान से अभी भी आफत की बरसात हो रही है। राज्य के सभी प्रमुख नदियों से लेकर नदी, नाले, खालो में इस कदर उफान आ गया है कि वह भारी तबाही मचा रहे हैं। गंगा नदी व टिहरी झील का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर चुका है। शिप्रा के जल कहर से सैकड़ों आवासीय भवनों में पानी भर गया है। नदियों का यह पानी अब मैदानी हिस्सों में भी कहर बरपाने को तैयार है। राज्य में अगर आज भी वैसी बारिश जारी रहती है जैसी बीते दो दिनों से हो रही है तो यह आपदा कितनी बड़ी हो जाएगी इसका अनुमान भी लगा पाना मुश्किल है। कुमाऊं और गढ़वाल के अधिकांश हिस्सों में इस आपदा के कारण पेयजल और बिजली आपूर्ति तथा इंटरनेट सेवाएं भी ठप हो चुकी है। जिसके कारण बचाव राहत कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। हालांकि उत्तराखंड में आई इस आपदा को सूबे का शासन प्रशासन पहले से ही अलर्ट था तथा केंद्र सरकार द्वारा भी हरसंभव मदद का भरोसा दिया जा रहा है खुद पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह भी स्थिति पर नजर रखे हुए हैं तथा सेना की मदद भी मुहैया कराने को कह रहे हैं लेकिन इस आपदा क्षेत्र के राज्यव्यापी होने तथा जटिल भौगोलिक परिस्थितियों के चलते सभी इंतजाम धरे के धरे रह गए हैं। पीड़ितों तक पहुंचना ही जब मुश्किल हो रहा है तो फिर रेस्क्यू व मदद की बात बेमानी ही हो जाती है। आसमानी आफत का यह कहर जब थम जाएगा तो उसके बाद ही पता चल सकेगा कि इससे जान—माल का कितना नुकसान हुआ है।