त्रिवेंद्र सरकार में भी खाली थे यह पद
देहरादून। अपने 8 सदस्य मंत्रिमंडल के साथ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सूबे की सत्ता दोबारा संभाल ली है। राज्य कैबिनेट में अभी तीन मंत्रियों के पदों को खाली रखा गया है। भाजपा की पूर्ववर्ती सरकार के समय भी ऐसा ही हुआ था। त्रिवेंद्र सिंह सरकार से शुरू हुई इस परंपरा का क्या औचित्य है यह समझ से परे है।
राज्य की 70 सदस्यीय विधानसभा में जब संवैधानिक व्यवस्था के तहत 11 सदस्यीय मंत्रिमंडल हो सकता है तो मंत्रिमंडल में दो या तीन मंत्रियों के पदों को खाली रखा जाना क्या प्रदेश की जनता के साथ नाइंसाफी नहीं है। पहले ही इस छोटे से राज्य में राजकाज देखने के लिए सिर्फ 11 मंत्री ही हो सकते हैं अगर इसमें भी 3 पदों को खाली रखा जाए तो क्या सभी विभागों का काम सुचारू रूप से किया जाना संभव हो सकता है। ऐसी स्थिति में देखा यही जाता है कि राज्य के वित्त मंत्रालय से लेकर लोक निर्माण और स्वास्थ्य विभाग तक अनेक महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा अपने पास रख ली जाती है। सही मायने में एक मंत्री एक या दो विभागों की जिम्मेवारी ही ठीक से निभा पाता है। अगर यह जिम्मेवारी एक दर्जन विभागों की होती है तो बस जिम्मेदारी निभाने की खानापूर्ति ही हो पाती है। मंत्री सिर्फ रबर स्टांप बन कर रह जाते हैं और सरकारी विभागों को चलाने का काम फिर अधिकारी करते हैं मंत्री जी तो बस पेपर साइन करने भर का काम करते रहते हैं क्या यह सूबे की जनता के साथ नाइंसाफी नहीं है।
उत्तराखंड कोई उत्तर प्रदेश तो है नहीं जहां 44—45 सदस्यीय मंत्रिमंडल होता है अगर दो चार मंत्री पद खाली रहे भी तो मुख्यमंत्री या अन्य कोई उनकी जिम्मेवारी निभा लेता है। लेकिन जहां मंत्रिमंडल ही 11 सदस्यीय हो वहंा तीन मंत्री पदों का खाली रखा जाना किसी की भी समझ नहीं आ सकता है। सरकार प्रचंड बहुमत वाली है जिससे नाराजोंं को मनाने या रूठों को मंत्री बनाकर खुश करने की भी आवश्यकता नहीं है और न ही योग्य विधायकों की कोई कमी है फिर भी निजी गुटबाजी या कारणों से मंत्रिमंडल का अधूरा रहना समझ नहीं आता। पिछली सरकार में पूरे 5 साल यही स्थिति रही लेकिन खाली मंत्री पद नहीं भरे गए अब फिर वही शुरुआत हुई है। जिसे राज्य के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता है।