राजनीति का यह कौन रंग रे

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भले ही देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिले 75 साल हो गए हो लेकिन देश की राजनीति पर इतने लंबे सफर के बाद भी जाति, धर्म, संप्रदायिकता का रंग आज तक भी जारी है। चुनाव चाहे किसी भी स्तर का हो और देश के किसी भी हिस्से में हो देश के नेता इस राजनीति में इस कदर माहिर हो चुके हैं कि वह किसी न किसी मुद्दे के जरिए ऐसा माहौल बना देते हैं कि मतदाताओं को दिशा भ्रमित होने से कोई नहीं रोक पाता है। उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में भले ही अभी छह माह का समय है लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की मुस्लिम टोपी को लेकर भाजपा के सांसद अनिल बलूनी के जो ट्यूटर वार छिड़ा है वह अभी से चरम पर पहुंचता दिख रहा है। अभी बीते दिनों पश्चिम बंगाल के चुनाव के दौरान भाजपा के तमाम नेताओं द्वारा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चिढ़ाने के लिए जिस तरह जय श्रीराम के नारे का इस्तेमाल किया गया था वह इतना शर्मनाक लगने लगा था कि खुद हिंदुओं को भी वह भगवान राम के उपहास जैसा लगने लगा था। दीदी को भला राम से या राम के नाम से क्या चिढ़ हो सकती है लेकिन भाजपा नेताओं ने इस बात का इतना प्रचार किया कि खुद हिंदू मतदाता भी भाजपा से चिढ़ने लगे मगर भाजपा नेताओं को अपनी धुन में यह पता ही नहीं चला कि वह जो कर रहे हैं उससे उनका ही नुकसान हो रहा है। चुनाव के अंतिम चरण से पूर्व मुथ्ौय्या समाज का वोट हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नेपाल जाकर देवी को स्वर्ण मुकुट चढ़ाते दिखे। अब उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के चुनाव से ऐन पूर्व प्रधानमंत्री ने अपने कैबिनेट में विस्तार कर संसद में खड़े होकर सब को बताया कि उन्होंने ओबीसी, एससी, एसटी व महिलाओं को जो मंत्री बनाया है वह विपक्ष को पच नहीं रहा है। काश प्रधानमंत्री यह भी बताते कि इसका उद्देश्य क्या है खैर भले ही प्रधानमंत्री इसे न बताए लेकिन मेडिकल कॉलेजों में ओबीसी के आरक्षण से उनका उद्देश्य पूरा देश जान गया है तथा लोग सवाल भी कर रहे हैं कि काश उन्होंने इसे 4 साल पहले कर दिया होता तो अब तक कई हजार ओबीसी अभ्यर्थियों का भला हो गया होता। उत्तर प्रदेश में इन दिनों ब्राह्मण सम्मेलनों और सम्मान की चर्चा आम है कोई परशुराम की मूर्ति लगवा रहा है तो कोई सम्मेलनों में जुटा है। आठ फीसदी ब्राह्मण वोटों के लिए सभी हथकंडे अपनाए जा रहे हैं सवाल यह है कि क्या देश में जाति, धर्म, संप्रदाय और क्षेत्रवाद के अलावा कोई मुद्दा नहीं है। महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य जो आम आदमी के लिए सबसे जरूरी हैं उन्हें हर बार क्यों दरकिनार कर दिया जाता है। आखिर यह देश की राजनीति का कौन सा रंग है जिस पर अन्य कोई रंग चढ़ता ही नहीं है

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