देश के लोगों ने शायद उस वक्त यह सोचा भी नहीं होगा कि अच्छे दिन आने की उम्मीद और आशाओं से वह मोदी जी को ला रहे हैं उन मोदी जी के शासनकाल में उनके इतने बुरे दिन आने वाले हैं कि दो जून की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल हो जाएगा। उनके कार्यकाल में भले ही आम आदमी के अच्छे दिन न आए हो लेकिन देश में महंगाई के अच्छे दिन जरूर आ गए हैं। लोगों ने सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें 5 रूपये किलो मिलने वाला आलू 50 रूपये किलो खरीदना पड़ेगा। 50 रूपये प्रति लीटर मिलने वाला पेट्रोल 100 रूपये और 40 रूपये लीटर मिलने वाले डीजल की कीमत 85 रूपये प्रति लीटर चुकानी पड़ेगी। पेट्रोलियम और रसोई गैस की कीमतें ही नहीं अगर खाघ तेलों की कीमतों पर नजर डाली जाए तो बीते चार—पांच महीने में उसकी कीमतों में 40 से 80 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। दालों की कीमतें भी 25 से 30 फीसदी बढ़ चुकी है। हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि जिस परिवार की रसोई का खर्च 10,000 प्रतिमाह था वह बढकर अब 15 से 18 हजार तक जा पहुंचा है। खास बात यह है कि इन बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण में सरकार पूरी तरह से फेल साबित हो चुकी है। अभी 1 सप्ताह पूर्व अमूल दूध की कीमतों में 2 रूपये प्रति लीटर की वृद्धि की गई थी अब मदर डेयरी मिल्क की कीमतें भी 2 रूपयें प्रति लीटर बढ़ा दी गई है। पेट्रोल—डीजल की कीमतों में वृद्धि के साथ अब सीएनजी की कीमतें भी बढ़ना शुरू हो गई है। एक तरफ पेट्रोलियम तेल की कीमतें बढ़ने से यात्रा किराया और माल भाड़ा बढ़ रहा है जिसका असर सभी उपभोत्तQा वस्तुओं को पड़ रहा है वहीं दूसरी तरफ कोरोना काल में लोगों के काम धंधे चौपट हो गए हैं वहीं करोड़ों लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं ऐसी स्थिति में गरीब और मध्यम वर्ग परिवारों में चूल्हा जलना मुश्किल हो रहा है। खास बात यह है कि महंगाई का यह तूफान कहीं भी रुकता नहीं दिख रहा है। राजनीतिक दलों के लिए भले ही बढ़ती महंगाई का यह मुद्दा एक चुनावी मुद्दा रहा हो लेकिन यह मुद्दा आम आदमी की भूख और पेट से जुड़ा हुआ है। अच्छे दिन आने वाले हैं और हम मोदी जी को लाने वाले हैं के नारे पर भरोसा करने वाले लोग अब 7 साल बाद यह महसूस कर रहे हैं कि उन्होंने इससे पूर्व इतने खराब दिन शायद कभी नहीं देखे। जब उनके पास काम धंंधा भी न रहे और महंगाई का आलम ऐसा हो कि नून—तेल का जुगाड़ भी मुश्किल हो जाए। गरीबी की रेखा से ऊपर उठने की चाह ने करोड़ों लोगों को गरीबी की रेखा से नीचे धकेल दिया है सरकार इन गरीबों को 10—20 किलो राशन या दो—चार हजार नगद दे भी दे तो इससे किसी का क्या भला हो सकता है जो खैरात सरकार बांट रही है वह भी वोट की राजनीति से प्रेरित है अच्छा होता सरकार देश में बढ़ती महंगाई को रोकने और रोजगार बढ़ाने पर काम करें।