भले ही युद्ध को किसी समस्या का संपूर्ण समाधान न माना जाता हो लेकिन इतिहास साक्षी है कि युद्ध की अनिवार्यता को नकारा नहीं जा सकता और न टाला जा सकता है अगर ऐसा संभव होता तो विश्व राष्ट्रों की तमाम कोशिशों के बाद भी रूस कदाचित भी यूक्रेन पर हमला नहीं करता। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस की चेतावनी और प्रयासों के बीच उस संयुक्त राष्ट्र के दबाव को रूस ने दरकिनार न किया होता जो यूरोपीय राष्ट्रों से अपनी सभी बातें बनवा लेता है। उल्लेखनीय बात यह है कि इन्हीं तमाम राष्ट्रों द्वारा सुरक्षा की गारंटी दिए जाने पर यूक्रेन ने अपने परमाणु हथियारों को त्याग दिया था अन्यथा आज की यह जंग आला और अदना राष्ट्र के बीच जंग न होकर दो परमाणु संपन्न महाशक्तियों के बीच की जंग होती और उसके राष्ट्रपति आज जिस तरह से यूक्रेन को जंग से पहले ही हथियार डालने का दबाव बना रहे हैं कदाचित भी ऐसा नहीं कर पाते। युद्ध से पूर्व यूक्रेन की हर संभव मदद का भरोसा दिलाने वाले अमेरिका सहित सभी राष्ट्र अब अपने हाथ पीछे खींच चुके हैं और वह सिर्फ रूसी राष्ट्रपति पुतिन की इस कार्रवाई की निंदा करने तक ही सीमित हो चुके हैं। जबकि पुतिन एक तानाशाह की तरह पूरे विश्व को धमकी दे रहे हैं कि अगर किसी ने भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की कोशिश की तो इसका परिणाम भुगतने को तैयार रहें उनका कहना है कि उसे ऐसी सजा देंगे कि आज तक इतिहास में किसी ने नहीं दी होगी। दरअसल इस जंग में किसी भी तीसरे राष्ट्र का उतरने का अर्थ ही एक और विश्व युद्ध होगा। क्योंकि यह विश्व युद्ध परमाणु युद्ध होगा जिसकी विभीषिका का अनुमान भी लगा पाना संभव नहीं होगा। पुतिन इसका अर्थ भले ही कुछ भी निकाले लेकिन यह वह भी जानते हैं कि वह अब सोवियत संघ वाली महाशक्ति नहीं है, विश्व के तमाम राष्ट्र उससे ज्यादा शक्तिशाली हैं और उनकी सैन्य क्षमता रूस से कहीं ज्यादा है लेकिन वह यूक्रेन के रास्ते फिर स्वयं को महाशक्ति बनने का सपना देख रहे हैं तो यह अब इस तेजी से बदलती दुनिया में संभव नहीं दिखता है। रूस के इस हमले से सिर्फ यूरोपीय राष्ट्रों में ही नहीं पूरे विश्व में हड़कंप मचा हुआ है। सभी विश्व राष्ट्र रूसी राष्ट्रपति पुतिन की कार्यवाही को लेकर नाराज हैं तथा रूस पर कडे़ं वैश्विक प्रतिबंधों की हिमायत कर रहे हैं। भले ही फिलहाल रूस इसकी चिंता न कर रहा हो, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम होंगे। रही बात यूक्रेन की जो अपनी सुरक्षा की बड़ी कीमत चुका रहा है और स्वयं को असहाय महसूस कर रहा है अब युद्ध विराम के बाद ही पता चलेगा कि वह कहां किस स्थिति में खड़ा होगा। भारत युद्ध की विभीषिका में दोस्ती के दोराहे पर खड़ा है और कुछ कहने या करने की स्थिति में नहीं है उसे बस अपने उन नागरिकों के सुरक्षित वापसी की चिंता है जो यूक्रेन में फंसे हैं। वहीं इस युद्ध के बाद भारत सहित सभी राष्ट्रों को अर्थव्यवस्था से जुड़े आफ्टर इफेक्ट के लिए भी तैयार रहना चाहिए जो तेल की कीमतों में उछाल और शेयर बाजारों में भारी गिरावट के रूप में अभी से दिखने लगे हैं।