- बात सनातन के सम्मान की, वोटरों का सम्मान शराब से
रुद्रप्रयाग। केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव के लिए कल मतदान होने जा रहा है लेकिन चुनाव प्रचार के बाद चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन पर भाजपा और कांग्रेस में आरोप—प्रत्यारोपों का दौर अपने चरम पर पहुंच गया है। किसी भी दल के नेता इस चुनाव में जीत के लिए किसी भी सीमा तक जाने में कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। सनातन का सहारा भी है साथ ही सांप्रदायिक आधार पर वोटरों को अपने पाले में खींचने की कोशिशें भी पुरजोर तरीके से की जा रही है। शराब और कवाब भी है तथा झूठ और सच्चाई का प्रचार भी। हरिद्वार से लेकर पहाड़ तक आज कांग्रेसी नेताओं ने जन भावनाओं को दरकिनार कर गलत तरीकों से जनादेश का अपहरण करने के आरोपो को लेकर जगह—जगह सरकार और भाजपा के खिलाफ प्रदर्शन तक किए। चुनाव आयोग को शिकायतें करने का क्रम भी जारी है। मतदान से पूर्व हर कोई हर एक हथकंडा अपनाने पर आमादा है क्योंकि भाजपा और कांग्रेस दोनों को केदारनाथ की कमान चाहिए।
किसने किसकी शराब पकड़ी कौन मतदाताओं को शराब बांट रहा है? यह अलग बात है लेकिन एक तरफ केदारनाथ सीट के चुनाव को सनातन धर्म और आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक बता कर उसकी सुरक्षा की गारंटी दी जा रही है वहीं मतदाताओं को जमकर शराब पिलाई जा रही है इसमें कोई दो राय नहीं है। भाजपा का दावा है कि वह पूर्व समय से अधिक बड़े अंतर से चुनाव जीत रहे है। जबकि कांग्रेस सत्ता के खिलाफ हवा का हवाला देकर अपनी जीत का दावा कर रही है।
भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज नेता चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद भी केदारनाथ में डेरा जमाए हुए हैं तथा घर—घर जाकर अपने लिए वोट की अपील करने के साथ ही एक दूसरे पर नजरे जमाये बैठे हैं कि कहीं कोई गड़बड़ी न होने पाए। इस सीट पर यूं तो 6 प्रत्याशी मैदान में है लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है। कल केदारनाथ के 90 हजार वोॅटर किसे केदार की कमान सौंपते है, यह अब मतदाताओं पर ही निर्भर करेगा। भले ही जीत के बड़े—बड़े दावे भाजपा व कांग्रेस की नेता कर रहे हों लेकिन जीत किसकी होगी यह 23 नवंबर को वोटो की गिनती के बाद ही पता चलेगा। मुकाबला बहुत ही कांटे का है इसलिए यह दावे भी मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए ही किए जा रहे हैं। केदारनाथ के चुनाव परिणाम को लेकर भाजपा खेमा ज्यादा चिंतित दिख रहा है। जिसकी वजह बीते दो उपचुनाव में मिली हार ही है। भाजपा नेताओं को पता है कि केदार हारे तो सब कुछ हारे। जबकि कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है।





