आसान नहीं सशक्त भू कानून की राह

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  • राज्य में न चकबंदी, न यह पता कितनी है कृषि भूमि
  • पहले लूट के रास्ते खोले, अब संरक्षण की बात
  • पहले मूल निवास का मुद्दा हल करें सरकार

देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भले ही जनांदोलन और जन भावनाओं के दबाव में सख्त भू कानून लाने की बात कह दी हो लेकिन क्या राज्य गठन के दो दशक बाद अब एक ऐसा भू कानून लाया जाना जो हिमालय संरक्षण के साथ ही राज्य की कृषि भूमि को बर्बाद होने से बचा सके, आसान काम होगा? वह भी ऐसी स्थिति में जब मूल निवास और स्थाई निवास जैसे मुद्दे सामने खड़े हो तथा राज्य में चकबंदी तक नहीं हो सकी हो।
सही मायने में वर्तमान सरकार के पास इसका भी कोई सही रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है कि राज्य के पास कुल कृषि भूमि कितनी है। यह अत्यंत थी हास्यास्पद बात है कि देश के कुल 13 हिमालयी राज्यों में अकेला उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जिसके पास कोई अपना ऐसा सशक्त भू कानून नहीं है जो राज्य की जमीनों का संरक्षण और प्रबंधन कर सके। एक अनुमान के अनुसार उत्तराखंड राज्य के कुल क्षेत्रफल का केवल 14 प्रतिशत हिस्सा ही कृषि भूमि है। बीते दो दशक में इसमें से कितनी भूमि बंजर या वीरान हो चुकी है इसका कोई लेखा—जोखा सरकार के पास नहीं है। न यह पता है कि कितनी जमीन नदी नालों खालों के बहाव में बह गई है।
पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी का कहना है कि सरकार पहले चकबंदी कराये। जिससे जमीन के मालिकाना हक और छितरी (टुकड़े टुकड़ों) बिखरी पड़ी जमीनों का बंदोबस्त हो सके। वहीं पूर्व मेयर व धर्मपुर विधायक विनोद चमोली का कहना है कि सरकार ऐसे भू कानून कैसे ला सकती है। पहले मूल निवास और स्थाई निवास के मुद्दे के बीच तो वह एक निश्चित लकीर खींच ले। उसे पहले मूल निवास के मुद्दे का निस्तारण करना जरूरी है तभी भू कानून लाया जा सकता है। सरकार बताएं कि क्या वह जो भू कानून लाएगी वह शहरों में लागू होगा या नहीं।
राज्य बनने के बाद पहली बार एन डी तिवारी के कार्यकाल में भू कानून लाया गया था लेकिन इसके बाद की सरकारों द्वारा इसमें जो संशोधन किए गए खासतौर पर त्रिवेंद्र सरकार द्वारा 12.5 एकड़ सीलिंग की सीमा हटाने जैसे व्यवस्थाओं के बाद राज्य की जमीनों की व्यापक स्तर पर हुई खरीद फरोख्त से जमीनों की जैसे लूट ही मच गई। सरकार भले ही लैंड यूज के गलत इस्तेमाल करने वालों से जमीन छीनने का दावा कर रही हो लेकिन यह आसान नहीं होगा। कांग्रेसी नेताओं का कहना है जब चिड़िया खेत चुग गई तो अब सरकार क्या चिड़िया पकड़ कर उनके पेट से दाना निकाल लेगी? सीएम धामी अगर भू कानून में कुछ फेरबदल भी कर ले तब भी उससे कुछ होने वाला नहीं है। लेकिन राज्य के लोगों को सशक्त भू कानून चाहिए जो जरूरी भी है लेकिन कैसे होगा यह पता नहीं।

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