बगावत की आग इधर भी है तो उधर भी कम नहीं

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  • निकाय के नतीजों को लेकर भाजपा भी असमंजस्य में

देहरादून। उत्तराखंड के निकाय चुनाव में किसका पलड़ा भारी रहेगा किसकी होगी जीत और किसकी होगी हार? 25 जनवरी को मतगणना के बाद ही पता चल सकेगा। अभी अपनी—अपनी जीत का दावा करने वाले भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को भारी बगावत और अपनों के विरोध का ही सामना करना पड़ रहा है। जिसे लेकर भाजपा व कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व हैरान परेशान है।
भले ही प्रत्यक्ष तौर पर पिथौरागढ,़ हल्द्वानी, कोटद्वार तथा रुद्रप्रयाग जैसे जगहों से बगावत और विरोध की खबरें आ रही हो या यह कहे कि खबरों की सुर्खियों में हो, लेकिन राज्य का कोई एक भी जिला इस बगावत से अछूता नहीं है। टिकट न मिलने से नाराज लोगों ने व्यापक स्तर पर पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ निर्दलीय नामांकन पत्र भरकर अपनी नाराजगी दर्ज कराई है। बगावत का झंडा बुलंद करने वाले कितने प्रत्याशी चुनाव जीत पाते हैं? यह अलग बात है लेकिन पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ 3—3, 4—4 बागियों के चुनाव मैदान में उतरने से भाजपा व कांग्रेस का चुनावी गणित जरूर गड़बड़ आएगा।
पिथौरागढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी मयूख महर अपनी पार्टी को खुली चुनौती देते हुए निर्दलीय प्रत्याशी मोनिका मेहर के समर्थन में खड़े हैं उनका दावा है कि वह अपने प्रत्याशी को चुनाव जिता कर ही रहेंगे और पार्टी के फैसले को गलत साबित करके ही दम लेंगे। कर्णप्रयाग से भाजपा विधायक के बेटे खुद निर्दलीय चुनाव मैदान में भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ तीन अन्य तथा कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ चार कांग्रेस के निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में है। पौड़ी, रामनगर, लाल कुआं ही नहीं हरिद्वार, रुड़की और लक्सर तक बागियों का बोलबाला है। भले ही यह बगावत कांग्रेस में अधिक दिख रही हो लेकिन भाजपा में कांग्रेस से भी ज्यादा है। अगर बात दून की भी की जाए तो भाजपा ने सौरव को टिकट दिया है मगर निवर्तमान मेयर गामा से लेकर अन्य तमाम टिकट की दावेदार चुनाव में उनके साथ कहीं खड़े दिखाई नहीं दे रहे हैं ऐसे में चुनावी नतीजे क्या होंगे अनुमान सहज लगाया जा सकता है।

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