- कल तक जानकारी नहीं दी तो अवमानना की कार्यवाही
- 15 मार्च को सामने आ जाएगा इलेक्टोरल बांड का पूरा सच
नई दिल्ली। आखिरकार केंद्र की मोदी सरकार के चुनावी चंदे (इलेक्टोरल बांड) का भांडा फूटना तय हो ही गया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एसबीआई को अब हर हाल में कल तक निर्वाचन आयोग को इलेक्टोरल बांड से जुड़ी सभी जानकारियां मुहैया कराने और निर्वाचन आयोग को इस जानकारी को 15 मार्च तक सार्वजनिक करने के जो आदेश आज दिए गए हैं उसके बाद अब एसबीआई या सरकार के पास इसे छुपाने का कोई जरिया शेष नहीं बचा है।
उल्लेखनीय है कि विगत 15 फरवरी को जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार की इलेक्टोरल बांड की व्यवस्था को असंवैधानिक ठहराते हुए उसे रद्द कर दिया गया था और इलेक्टोरल बांड कैश करने पर भी रोक लगा दी गई थी उसी समय सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को 6 मार्च तक इलेक्टोरल बांड की सारी जानकारी निर्वाचन आयोग को देने के निर्देश भी दिए गए थे। लेकिन एसबीआई बजाय जानकारी देने के 5 मार्च को एक अपील लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया कि उसे इसके लिए 30 जून तक का समय दिया जाए। एसबीआई की इस अपील के खिलाफ ए डी आर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर एसबीआई के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का आरोप लगाते हुए कार्यवाही करने की याचिका दायर कर दी गई।
इस याचिका पर आज चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा सुनवाई की गई। सरकार और एसबीआई की ओर से पैरवी करने वाले हरीश साल्वे की सभी दलीलों को खारिज करते हुए अदालत ने उनसे पूछा कि हमने आपको 25—26 दिन का समय दिया था इसमें आपने क्या कुछ किया है कोर्ट ने कहा कि अभी हम आपके खिलाफ कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई नहीं कर रहे हैं लेकिन कल शाम 5 बजे तक अगर एसबीआई द्वारा निर्वाचन आयोग को इलेक्टोरल बांड की जो जानकारी मांगी गई है अगर नहीं दी जाती है तो हमें आपके खिलाफ कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही करने पर विवश होना पड़ेगा।
कोर्ट ने इसके साथ ही साफ किया कि हम आपको पर्याप्त समय दे चुके हैं अब और समय आपको नहीं दिया जा सकता है। कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को 15 मार्च शाम तक इलेक्टोरल बांड की पूरी जानकारी सार्वजनिक करने के निर्देश दिए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस सख्त रवैये व फैसले के बाद एसबीआई जो इस मामले को टालना चाहता था अब कोई विकल्प शेष नहीं बचा है। जैसा कि सर्वविदित है यह एसबीआई को नहीं देश की केंद्र सरकार को एक बड़ा झटका है। कोर्ट के इस फैसले से यह अब सबको पता चल सकेगा कि किसने कब—कब किस पार्टी को कितना चंदा दिया और क्यों दिया?