धर्म की आड़ में हिंसा का खेल

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रामनवमी के दिन शोभा यात्राओं के दौरान देशभर में जिस तरह से हिंसा का तांडव देखने को मिला वह अत्यंत ही चिंतनीय है। देश के बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, गुजरात सहित आधा दर्जन से भी अधिक राज्यों में सैकड़ों स्थानों पर हिंसा, आगजनी और पत्थरबाजी की इन घटनाओं में कई लोगों की जानें चली गई व सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हो गए। कुछ स्थानों पर हालात अत्यंत ही खराब है बिहार के नालंदा और सासाराम तथा पश्चिम बंगाल के हावड़ा, गुजरात के वडोदरा और हैदराबाद में अभी भी इन घटनाओं को लेकर इतना तनाव बना हुआ है कि भयभीत लोग अपना घर—बार छोड़कर पलायन पर विवश हैं वहीं जिन लोगों के घर मकान या दुकानों को उपद्रवियों द्वारा फूंक दिया गया उनकी पूरी जिंदगी की कमाई कुछ ही क्षणों में स्वाह हो गई। दंगाई और उपद्रवी चाहे शोभा यात्रियों में शामिल रहने वाले लोग हो या बाहर वाले लेकिन धर्म के नाम पर होने वाली इस तरह की हिंसा और आगजनी में सबसे ज्यादा नुकसान आम आदमी का ही होता है। सवाल यह है कि इन प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को इस तरह की हिंसा की आशंका थी और उनके द्वारा चेतावनियां दी जा रही थी तब फिर इस तरह की वारदातों को रोकने के लिए पर्याप्त सुरक्षा के इंतजाम क्यों नहीं किए गए। आमतौर पर यही देखा जाता था कि पुलिस प्रशासन और खुफिया एजेंसियां पहले सोई रहती हैं और जब सब कुछ हो जाता है तो फ्लैग मार्च होता है, धारा 144 लागू की जाती है तथा इंटरनेट सेवाएं बंद की जाती हैं। भीड़ के सामने पुलिस भागती नजर आती है इस तरह की तस्वीरें अमूमन देखी जाती हैं। जिनके घर जल गए जिनके लोग मर गए वह विलाप कर रहे हैं जो जिंदा बचे हैं वह घर मकान छोड़कर भाग रहे हैं और भयभीत है लोगों का कहना है कि कैसा शासन प्रशासन जिसकी मौजूदगी में लोग उत्पात मचाते रहे और लोग मरते रहे। अब इन घटनाओं की सीआईडी और एसआईटी जांच होगी। कुछ लोगों की गिरफ्तारियां होंगी और थाना—चौकी होगा। राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा अब इन घटनाओं को लेकर एक दूसरे पर आरोप—प्रत्यारोप लगाए जाने भी शुरू हो गए हैं। जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं वहां भाजपा पर गुंडे भेजने और उपद्रव कराने का आरोप लगाया जा रहा है जहां भाजपा की सरकारें हैं वहां विपक्षी दलों पर निशाना साधा जा रहा है। लेकिन यह सत्य है कि इन घटनाओं के मूल में धर्म की वह राजनीति ही है जिसका प्रयोग देश के राजनीतिक दल लंबे समय से कर रहे हैं। आम जनता को हिंसा में झोेंकने वाली इस राजनीति के लिए बकायदा तैयारियां की जाती हैं हथियार और पत्थर तथा पेट्रोल बम तैयार किए जाते हैं। नेताओं द्वारा आए दिन सार्वजनिक मंचों से भड़काऊ बयान दिए जाते हैं और यह सारा काम सिर्फ और सिर्फ वोट की राजनीति के लिए किया जाता है। देश की जनता को जाति और धर्म के नाम पर लड़ाने की यह राजनीति देश के समाज के लिए एक ऐसा सरदर्द बन चुकी है जिसका कोई समाधान नहीं है। हर धर्म और जाति में कुछ न कुछ ऐसे अराजक तत्व होते हैं जिनको छोटे—मोटे प्रलोभन देकर भड़काया और उकसाया जा सकता है। किंतु यह न तो राष्ट्र हित में अच्छा है और न समाज हित में। किसी भी चुनाव से पूर्व तो इस तरह की वारदातों की बाढ़ सी आ जाती है। देश को इसका सबसे बड़ा नुकसान सामाजिक मतभेद और विभाजन के तौर पर तो रहा है लेकिन देश के नेता इस पर कुछ भी सोचने को तैयार नहीं है।

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