उत्तराखंड राज्य गठन के बाद भर्तियों में किस तरह खेला हो रहा है। बीपीडीओ भर्ती घोटाला इसकी एक बानगी भर है जिसका खुलासा कल एसटीएफ द्वारा किया गया। इस मामले में भले ही एसटीएफ द्वारा बीपीडीओ भर्ती का परीक्षा पत्र लीक करने वाले 6 सदस्यों को गिरफ्तार कर उनसे 37 लाख रूपये भी बरामद किया गया है। खुलासे में बताया गया है कि उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में गोपनीय काम करने वाली निजी एजेंसी के कंप्यूटर प्रोग्रामर जयजीत ने पर्चा आउट किया जिसके लिए नकल माफियाओं ने उसे 60 लाख रूपये दिए। पकड़े गए लोगों में एक आयोग का पूर्व कर्मचारी और एक कोचिंग सेंटर का मालिक है। इन लोगों ने कितने लोगों को नकल कराई और नकल के जरिए कितने लोग परीक्षा पास कर गए इसका अभी खुलासा नहीं हो सका है। कुल मिलाकर यह नकल माफिया का सुनियोजित तरीके से रचा गया षड्यंत्र था। व्यापक स्तर पर नकल हुई यह तय है इस परीक्षा में जो 854 पदों के लिए हुई थी तथा 2 लाख में से लगभग 1.5 लाख लोग पास हो गए थे। इस परीक्षा में हुई धांधली को लेकर लंबे समय से सवाल उठ रहे थे चयन आयोग भी संदेह के घेरे में था और अब साफ हो गया है कि पर्चा आयोग से ही लीक हुआ था। इसलिए सवाल यह भी उठ रहा है क्या ऐसा पहली बार हुआ है या फिर और भी परीक्षाओं में ऐसा होता रहा है। 4 दिन पूर्व इसी मुद्दे पर कांग्रेस ने सचिवालय का घेराव भी किया था। बात सिर्फ उत्तराखंड की नहीं है जिस के युवाओं को उम्मीद थी कि अलग राज्य बनने पर उनके भी अच्छे दिन आ जाएंगे। पूरे देश का और हर एक प्रदेश का कमोबेश हाल एक जैसा ही है जहां नौकरियां दलालों द्वारा बेची जाती हैं। पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ बनर्जी की 2 दिन पूर्व शिक्षक भर्ती घोटाले में गिरफ्तारी हुई है और उनकी सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के घर से 20 करोड़ से अधिक रुपए बरामद हुए हैं। जिस पर अब ममता सरकार को जवाब देते नहीं बन रहा है। सरकारी नौकरियों में होने वाली इस धांधली को सिर्फ भ्रष्टाचार के एक पहलू से ही नहीं देखा जा सकता है। वह बच्चे जो दिन रात पढ़ाई करते हैं ट्यूशन और कोचिंग के लिए पैसा खर्च करते हैं तथा किसी भी पद की परीक्षा को पास करने की योग्यता भी रखते हैं लेकिन फिर भी इस धांधली के कारण उन्हें नौकरी नहीं मिल पाती है और जो अयोग्य होते हैं वहीं प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छी रैंक हासिल कर लेते हैं वह भी सिर्फ 1 दिन पढ़ाई करके। यह स्थिति आयोग कर्मचारियों के उच्च सरकारी पद पर पहुंच जाने के दृष्टिकोण से भी घातक है। बीपीडीओ की इस परीक्षा में भी नकल माफिया ग्रुप के लोग खुद भी 42 वंा व 53 वां रैंक हासिल करने में सफल रहे। सवाल यह है कि आखिर कब तक ट्टकौवा मोती चुनता रहेगा ’ और सरकारी नौकरियों को बेचे जाने का यह धंधा कैसे रोका जा सकता है? यहां तो भर्तियों से लेकर ट्रांसफर पोस्टिंग तक में धांधली का खेल खेला जा रहा है। भ्रष्टाचार की अविरल गंगा बह रही है वह भी जीरो टॉलरेंस के दावों के बीच होकर। निश्चित ही यह चिंताजनक स्थिति है।