जम्मू कश्मीर के पहलगाम मेंं आतंकवादियों ने 28 लोगों को मार डाला जिसमें 26 पर्यटक और दो विदेशी लोग शामिल हैं। कई घायल लोग अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। देश को दहला देने वाली इस वारदात से सरकार का वह दावा जिसमें कश्मीर में अमन चैन वापसी की बात की जा रही थी तार—तार हो गया है। वहीं दूसरी ओर यह हमला देश की सुरक्षा और इंटेलीजेंस एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़ा करने वाला है, जिन्हें इतने बड़े हमले का कोई इनपुट समय रहते नहीं मिल सका। एक खास बात इस हमले को लेकर यह है कि क्या इसका उद्देश्य हालिया अमरनाथ यात्रा को रोकना है क्योंकि यह हमला पहलगाम में हुआ है जो अमरनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव स्थल है। आतंकियों द्वारा इस कायराना वारदात को जिस अंदाज में अंजाम दिया गया है और चुन—चुन कर लोगों की पहचान करने के बाद उन्हें गोलियां मारी गई है उससे यह साफ है कि आतंकियों के निशाने पर सिर्फ हिंदू ही थे जिनकी हत्या की है उनके परिजनों का यह कहना है कि जा मोदी को बता देना? सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या सरकार को चुनौती देना नहीं है राष्ट्र को दी जाने वाली खुली चुनौती है जो आतंकियों के हौसले और इरादों को साफ—साफ बयां करती है। देश के सत्ता शीर्ष पर बैठे नेता लश्कर ए तैय्यबा और टीआरएफ जैसे आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगाकर कश्मीर घाटी से धारा 370 को समाप्त करके अगर यह माने बैठे है कि उन्होंने कश्मीर घाटी में सब कुछ ठीक—ठाक कर दिया है तो यह उनका एक मुगालता ही है। लश्कर ए तैय्यबा पर प्रतिबंध के बाद 2019 में केंद्र की भाजपा सरकार कश्मीर से धारा 370 को समाप्त कर जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया गया जिसे अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में बताया गया लेकिन इसके बाद भी कश्मीर घाटी में लगातार हिंदुओं तथा पुलिस बलों पर हमले जारी रही है। भले ही इन हमलों में मजदूरों और शिक्षकों को शिकार बनाया गया हो लेकिन इसमें तीन भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या भी शामिल है और कुछ सुरक्षा बलों के अधिकारियों की हत्या भी। घाटी में पूर्ण शांति कभी नहीं रही जिसके मद्देनजर 2023 में सरकार द्वारा टी आर एफ पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है लेकिन इस हमले से यह साफ हो चुका है कि यह समस्या अभी खत्म नहीं हुई बल्कि और अधिक गंभीर चुनौती बन चुकी है। अभी चंद रोज पहले पाकिस्तान के आर्मी की असीम मुनीर अहमद ने कहा था कि कश्मीर हमारे गले की नस है हम कश्मीर पर अपना दावा भला कैसे छोड़ सकते हैं। क्या हिंदुस्तान के आर्मी चीफ व नेताओं में से किसी ने भी इसे नोटिस किया? इसके उलट हमारे पूर्व आर्मी चीफ अपनी ही सेना की गिनाते रहते हैं और नेताओं को वोट की राजनीति से ही फुर्सत नहीं है। कब तक हम आतंकियों की गोलियों का निशाना बनते रहेंगे क्या इसकी जवाब देही किसी की है? कश्मीर घाटी से दिल दहला देने वाली तस्वीर सामने आई है वहीं यह खुफिया एजेंसियों की बड़ी नाकामी भी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि लंबे समय से कुछ वर्दी धारी पर्यटकों को यह फोटो क्यों खींच रहे हो अपना पहचान पत्र दिखाओ जैसी गतिविधियां चला रहे थे और इसे ही इस हमले में प्रयोग में भी लाया गया। खुफिया विभाग को इतनी बड़ी वारदात का कोई इनपुट न मिल पाना हैरान करता है। अब देश की सरकार क्या करती है? यह अलग बात है लेकिन इस गंभीर चुनौती से निपटने के लिए बड़ी तैयारी की जरूरत है। न कि मात्रा दिखावे की कार्रवाई की। क्योंकि यह एक राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा सवाल है। निर्दाेष और निहत्थे पर्यटकों की हत्या की यह घटना कोई राजनीति का विषय नहीं है।