सत्य का सामने आना जरूरी

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दिल्ली हाई कोर्ट में तैनात न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा बीते 10 दिनों से खबरों की सुर्खियों में बने हुए हैं। होली के पूर्व उनके आवास में हुई अग्निकांड की घटना और इसमें भारी मात्रा में करेंसी के जलने व मिलने की खबरों ने देश की न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के मुद्दे को चर्चाओं के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है। खास बात यह है कि इस हाई प्रोफाइल मामले को लेकर कोई बड़ा बखेड़ा न हो, समूचा तंत्र इस अति संवेदनशील मुद्दे को दबाने में जुट गया। लेकिन इस मामले में अब यह कहावत चरितार्थ होती दिख रही है कि ट्टमर्ज बढ़ता गया ज्यों—ज्यों दवा की गई। नित नए—नए खुलासे होते जा रहे हैं और यह खुलासे इस मामले में अब तक दी गई तमाम दलीलों और मामले को दबाने वालों पर ही भारी पड़ते जा रहे है। आरोपी जस्टिस वर्मा जब यह देख समझ चुके थे कि उनके बचाव में पूरा तंत्र उनकी मदद कर रहा है तो उन्होंने भी अपनी सफाई पेश करते हुए कह दिया कि इस आग लगने की घटना और करेंसी से उनका या उनके परिवार का कोई संबंध नहीं है, उनके आवास के आउटडोर में लगी आग में क्या कुछ जला है उनके किसी परिजन तक को नहीं दिखाया गया है। यह उन्हें बदनाम करने की साजिश भर है। लेकिन अब इस घटना के जितने वीडियो और साक्ष्य सामने आ चुके हैं, वह इसकी हकीकत को बताने के लिए बहुत काफी हैं। अग्निशमन कर्मचारियों का आग बुझाने का वह वीडियो जिसमें नोटों की गड्डियों को जलते और एक कर्मचारी द्वारा गांधी के जलने की बात कहते हुए सुना जा सकता है। उनके आवास के आसपास मिले अधजले नोटों के अंशों का मिलना भी इस बात की पुष्टि करता है। भले ही अग्नि शमन विभाग के अधिकारी इस बात से मुकर चुके हो कि इस आग में भारी मात्रा में करेंसी जलती देखी गई। और दिल्ली पुलिस ने इस पर खामोशी साध ली गई हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा जस्टिस वर्मा के घर हुए अग्निकांड और करेंसी जलने के इस मामले में जांच बैठाना, उनका स्थानांतरण फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट किया जाना तथा इस मामले की जांच पूरी होने तक उन्हें किसी भी केस की सुनवाई करने पर पाबंद किया जाना यह साफ करता है कि यह धुंआ बिना आग के नहीं उठ रहा है। न्यायपालिका जिस पर देश की जनता भरोसा करती रही है अगर उसे बनाए रखना है तो अब यह जरूरी हो गया है कि इस मामले की जांच अंतिम सवाल का जवाब मिलने तक होनी ही चाहिए और दोषियों को सजा भी मिलनी चाहिए। जस्टिस वर्मा के आवास तक यह रुपए कैसे पहुंचे किसने पहुंचाये? इस आग में कितने करोड रुपए जलकर राख हो गए? इन जले हुए नोटों की राख और मलबे को किसने हटवाया और कहां ठिकाने लगाया गया। यह रुपया कहां से आया यह सवाल ही नहीं यह सवाल भी जरूरी है कि यह करेंसी आखिर थी किसकी? क्या जस्टिस वर्मा को बदनाम करने के लिए किसी ने इतनी बड़ी और भारी मात्रा में करेंसी उनके आवास तक पहुंचाई और जलवाई भी? इस बड़े झूठ के सहारे सच को उजागर होने से नहीं रोका जा सकता है। न खाऊंगा न खाने दूंगा का दावा करने वाली सरकार व सुप्रीम कोर्ट की यह जिम्मेदारी है कि वह इसकी जांच करायें, जिससे दूध का दूध व पानी का पानी हो सके।

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