न्यायपालिका पर सवाल

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दिल्ली हाईकोर्ट में तैनात न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के घर भारी मात्रा में नगदी मिलने की खबर कल सोशल मीडिया से सुप्रीम कोर्ट और देश की संसद तक पहुंच गई। इस खबर का यह हैरान करने वाला पहलू है कि अब तक न तो ईडी और न ही सीबीआई को इस खबर की भनक लग सकी है और न किसी अन्य जांच एजेंसी को। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि यह घटना अगर किसी सामान्य नागरिक या विपक्षी दल के नेता से जुड़ी होती तो अब तक तमाम एजेंसियां उसके घर तक पहुंच चुकी होती और उसे गिरफ्तार कर जेल पहुंचा दिया जाता। लेकिन मामला न्यायपालिका और एक न्यायमूर्ति से जुड़ा है इसलिए घटना के एक सप्ताह बाद तक यह भी पता नहीं चल सका है कि यह खबर एक अफवाह है या एक ऐसा सच जिसे छुपाया जा रहा है। उससे भी खास बात यह है कि जिसने यह धन देखा और इसकी सूचना पुलिस को दी किसी ने भी यह नहीं बताया कि न्यायमूर्ति वर्मा के घर से कितने रुपए मिले वैसे तो खुद न्यायमूर्ति को सामने आकर स्थिति को स्पष्ट कर देना चाहिए कि उनके घर पर कितना पैसा रखा था और यह कहां से आया था और अगर यह अफवाह भी है तब तो उन्हें मीडिया के सामने लाजमी आना चाहिए था और सच्चाई बतानी चाहिए थी क्योंकि इस खबर से न्यायपालिका की साख और आम आदमी का भरोसा जुड़ा हुआ है। न्यायमूर्ति वर्मा अगर खुद ही बता देते तो आज जो सवाल तथा संशय के बादल छाए हुए हैं वह साफ हो जाते। एक और सवाल यह है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायमूर्ति वर्मा का स्थानांतरण फिर से इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिए जाने पर यह बताया गया है कि उनके स्थानांतरण का उनके घर में लगी आग या नगदी की बरामदगी से कोई लेना—देना नहीं है दोनों अलग—अलग विषय है लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा नगदी की बरामदगी की आला जांच कराने की जो बात कही गई है वह यही बताती है कि कुछ न कुछ तो है अगर कुछ नहीं होता तो इस आला जांच की भी क्या जरूरत थी? इस पूरे प्रकरण में मीडिया की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि यह घटना होली से एक दिन पहले की है जब न्यायमूर्ति के दिल्ली स्थित आवास पर देर रात अचानक आग लग गई। इसी दौरान फायर ब्रिगेड और पुलिस को उनके आवास के एक कमरे से भारी मात्रा में नजदीकी बरामदगी की बात सामने आई है। अब इसे एक सप्ताह से भी अधिक का समय बीत चुका है लेकिन एक सप्ताह बाद भी इसका सच सामने आना तो दूर अब तक यह भी साफ नहीं हो सका है कि इसमें उनके घर से क्या बरामद किया गया है। निश्चित ही यह संशय की स्थिति ठीक नहीं है इसे लेकर जो भी सवाल उठ रहे हैं उनका जवाब देश को मिलना ही चाहिए। क्या देश की अदालतों में फैसलों को नोटों से खरीदा जा रहा है। अभी ईडी ने छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के आवास पर छापेमारी की थी। बघेल इसके बाद मीडिया के सामने आए और बताया कि 33 लख रुपए मिले जिसका वह सारा हिसाब दे देंगे कि कहां से आया। जस्टिस वर्मा भी अगर ऐसा कुछ करते तो कम से कम उस छिछलेदरी से बचा जा सकता था जो अब हो रही है। देखना यह है कि अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा जो आला जांच कराई जा रही है तथा संसद में पीठ द्वारा सांसदों को जो जांच का भरोसा दिया जा रहा है उससे क्या कुछ निकल कर सामने आता है लेकिन न्यायपालिका के दामन पर जिस तरह का दाग इस घटना से लग रहा है वह चिंताजनक है।

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