सत्र और यातायात व्यवस्था

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जब भी विधानसभा का सत्र होता है उस दौरान यातायात व्यवस्था किस तरह चरमरा जाती है और लोगों को आवागमन में कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है इसे सिर्फ वही लोग महसूस कर सकते हैं जो इस अव्यवस्था का शिकार होते हैं। कल विधानसभा सत्र के पहले ही दिन रिस्पना पुल पर 4 घंटे तक जाम की स्थिति बनी रही। इस जाम में फंसे लोगों की परेशानियों को न तो पुलिस प्रशासन समझ सका और न विधानसभा में बैठे माननीय मंत्री और विधायक समझ सकते हैं। एक खास बात यह है कि यह समस्या कोई नई या पहली बार होने वाली समस्या नहीं है। राज्य गठन के बाद से लोग इस समस्या को झेल रहे हैं। खास तौर से रिस्पना नदी के पार रहने वाले लोगों के लिए यह समस्या उनके लिए जी का जंजाल बनी हुई है। हरिद्वार बायपास और हाईवे पर सत्र के दौरान की जाने वाली वेरीकेटिंग के कारण लोगों का पैदल आवागमन भी संभव नहीं रहता है आईएसबीटी की ओर से रिस्पना पुल की ओर आने वाला ट्रैफिक या फिर हरिद्वार ऋषिकेश की ओर से आने वाला ट्रैफिक रूट डायवर्ट कर कहीं से भी घुमा फिरा कर निकाला जाए, आसपास के तमाम गली मोहल्लौ की सड़कों पर दो पहिया वाहनों की इस कदर भरमार हो जाती है कि इस क्षेत्र के स्थानीय नागरिक भी असहज हो जाते हैं। बात सिर्फ शहर की ओर से आने जाने वाले ट्रैफिक तक ही सीमित नहीं होती है बल्कि पहाड़ से और हरिद्वार की ओर से आने वाले यात्रियों को भी सत्र के दौरान तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। स्थानीय लोगों को भले ही सत्र के कारण यातायात बंद होने या रूट डायवर्ट किये जाने की जानकारी रहे लेकिन जो लोग बाहर से आने वाले हैं उन्हें तो इसकी जानकारी तक नहीं होती है। इन यात्रियों में तमाम लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने लगेज और बच्चों के साथ भी होते हैं। ऐसे लोगों के लिए दो—चार किलोमीटर पैदल चलना भी संभव नहीं होता है। बाहर से जो लोग टैक्सी मैक्सी के द्वारा आवा गमन करते हैं उन्हें रिस्पना पुल तक पहुंचना भी अत्यंत मुश्किल काम हो जाता है। सत्र के दौरान बच्चों को स्कूल छोड़ने और लाने ले जाने से लेकर वृद्ध और बीमार लोगों को अस्पताल तक ले जाने में कई तरह की मुश्किलें झेलनी पड़ती है। खास बात यह है कि विगत ढाई दशक से यह समस्या यथावत बनी हुई है पहले दून की आबादी व वाहनों की संख्या बहुत कम होने के कारण परेशानी कम थी लेकिन अब यह समस्या कई सुधार करने के बावजूद भी हर साल और अधिक गंभीर होती जा रही है। यही नहीं विधानसभा सत्र के दौरान राजनीतिक दल और सामाजिक संगठनों द्वारा तमाम मुद्दों और स्थानीय समस्याओं को लेकर धरने व प्रदर्शनों का जो आयोजन किया जाता है उसके कारण यातायात व्यवस्था पूरी तरह से ठप हो जाती है और जो लोग भीड़ या जाम में फंस जाते हैं वह घंटो फंसे रहते हैं। इस समस्या का कोई स्थाई समाधान तब तक संभव नहीं है जब तक दून के किसी बाहरी छोर पर नये विधान भवन का निर्माण नहीं हो जाता है। लेकिन 25 सालों में जो राज्य अपनी राजधानी पर कोई ठोस फैसला न कर सका हो उससे यह उम्मीद करना कि वह इस समस्या का समाधान बहुत जल्द निकाल सकेगा बेमायने ही है। भले ही नए विधान भवन के लिए कई सालों से कवायत चल रही हो।

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