अर्थव्यवस्था को मिलेगी गति

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आरबीआई द्वारा बीते कल रेपो रेट में 0.25 फीसदी की कटौती की जो घोषणा की गई है, उससे सिर्फ उन लोगों को ही राहत नहीं मिलेगी जिन्होंने बहुत पहले से लंबी अवधि के ऋण ले रखे हैं। बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी गति मिलने की उम्मीद की जा सकती है। बीते कई माह जो अर्थव्यवस्था के विकास का पहिया ठहर सा गया था वह आगे बढ़ेगा। आरबीआई द्वारा 5 वर्ष बाद रेपो रेट में कमी करते हुए अब इसे 6.50 से 6.25 फीसदी किया गया है। अगर रेपो रेट को सरल भाषा में समझा जाए तो यह वह दर प्रतिशत होता है जिस ब्याज दर पर आरबीआई द्वारा बैंकों को ऋण दिया जाता है। बैंकों को अगर ऋण सस्ते यानी कम ब्याज दर पर मिलेगा तो बैंक उपभोक्ताओं को भी कम दर पर ऋण उपलब्ध करा सकेंगे। बीते 5 सालों में कोरोना महामारी जैसे कई कारणों से अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त रही। आर्थिक मंदी की आशंकाओं के बादल भी विश्व अर्थव्यवस्था पर छाये रहे इसलिए आरबीआई भी फूंक—फूंक कर कदम रखता रहा और 5 सालों में रेपो रेट में सिर्फ बढ़ोतरी ही की जाती रही जिसके कारण बैंक ऋणों की दरों में भी इजाफा होता रहा और ऋण लेने वालों में भी उदासीनता का माहौल बना रहा। स्वाभाविक ही था कि इस तरह की अव्यवस्था में बजारों की रौनक भी कम होना लाजिमी था। आप इसे ऐसे भी समझ सकते हैं जब लोगों के पास पैसा नहीं होगा तो खरीदारी भी कैसे करेंगे। रेपो रेट में कमी आने से लोग ऋण भी लेंगे और उनकी जेब में पैसा आएगा तो वह खर्च भी करेंगे। अर्थव्यवस्था को गतिमान बनाए रखने के लिए बाजार का गतिशील रहना जरूरी है। जिन्होंने पुराने ऋण ले रखे हैं उन्हें ब्याज दर में कमी आने से कुछ न कुछ तो बचत होगी। अभी सरकार द्वारा आम बजट में आयकर की टैक्स स्लैब में बड़ा बदलाव करने जिसमें 12 लाख तक की आय वालों को आम कर के दायरे से बाहर रखा गया है मध्यम वर्ग के लोगों को आर्थिक फायदा दिया गया था और रेपो रेट में कमी करने के जरिए थोड़ी राहत और दे दी गई है। जिसका फायदा आम आदमी को मिलने के साथ देश की अर्थव्यवस्था को भी मिलेगा। इस कटौती के साथ आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा द्वारा आगामी वर्ष में जीडीपी की विकास दर 6.75 फीसदी रहने की संभावना जताई गई है। निश्चित तौर पर अगर यह अनुमान सही साबित होता है तो यह भारत की अर्थव्यवस्था के मजबूती से आगे बढ़ने का संकेत होगा। बीते कुछ समय से भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने या दूसरे शब्दों में विकसित राष्ट्र बनाने की जो बात कही जा रही है उसके लिए भारत की विकास दर का 8 फीसदी के ऊपर होना जरूरी है जो अभी 5 और 6 फीसदी के बीच ही कई सालों से झूल रही है वह भी एक साल नहीं लगातार कई साल 8 फीसदी से इसे ऊपर रहना जरूरी है जो अभी इतना आसान टास्क नहीं है लेकिन फिर भी इस लक्ष्य को हासिल करने के प्रयास जारी रखना जरूरी है। यह देश युवाओं का देश है जिन्हें आगे बढ़ने के बेहतर अवसर प्रदान करके अर्थव्यवस्था की रफ्तार को बढ़ाया जा सकता है। अर्थव्यवस्था को जितनी अधिक गतिमान रखा जाएगा वह उतनी ही मजबूती से आगे बढ़ेगी।

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