जीतेगी तो भाजपा ही

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आपको भले ही यह बात थोड़ी सी अटपटी लग रही होगी कि हम किसी भी चुनाव में मतदान और मतगणना से भी पहले किसी की भी जीत की गारंटी भला कैसे दे सकते हैं लेकिन यहां यह समझा जाना ज्यादा जरूरी हो गया है कि यह गारंटी हम नहीं दे रहे हैं यह गारंटी तो भाजपा की गारंटी है। जिसे हम बीते कुछ समय से देश के पीएम से लेकर उत्तराखंड के सीएम तक से सुनते चले आ रहे हैं। आज उत्तराखंड में निकाय चुनाव के लिए मतदान हो रहा है चुनाव प्रचार के दौरान हमने मुख्यमंत्री धामी को अपनी सभाओं में लोगों से यह कहते हुए सुना था कि ट्रिपल इंजन की सरकार होगी तो तीन गुना अधिक तेजी से विकास होगा। अगर किसी और दल की सरकार होगी तो आपके काम नहीं होंगे। यह भाजपा की जीत की गारंटी का सिर्फ एक पहलू है। अब इसके एक दूसरे पहलू पर गौर करें अभी हरबर्टपुर नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद की कांग्रेस प्रत्याशी यामिनी रोहिला का नामांकन पत्र जांच के दौरान इसलिए खारिज कर दिया गया था कि क्योंकि उनका जाति प्रमाण पत्र गलत था। नामांकन पत्र खारिज होने से नाराज कांग्रेस ने इसे लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो हाई कोर्ट की सिंगल बैच ने उनका नामांकन खारिज करने को सही ठहरा दिया गया लेकिन कांग्रेस ने डबल बेंच में इसे फिर चुनौती दी तो डबल बेंच उनका नामांकन पत्र खारिज किए जाने पर कड़ी फटकार लगाते हुए कि उनका नामांकन पत्र खारिज किया जाना दुराग्रह पूर्ण है। इस मामले का सबसे रोचक तथ्य यह है कि इसके बाद चुनाव आयोग के रिटर्निंग अफसर इस मामले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर स्टे देते हुए चार सप्ताह बाद सुनवाई की तारीख दी गई जबकि चुनाव होने में मात्र चार दिन ही शेष थे। एक प्रत्याशी को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए चुनाव आयोग अगर सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है तो यह एक खास बात है। वहीं सुप्रीम कोर्ट अगर चार सप्ताह बाद इस मामले की सुनवाई करे भी और यामिनी का नामांकन पत्र को वैध भी ठहरा दे तब भी क्या यामिनी और कांग्रेस को इसका कोई लाभ मिल सकेगा जी नहीं। बिल्कुल भी नहीं, चुनाव आयोग यामिनी के लिए दोबारा चुनाव तो नहीं कराएगा? यही भाजपा और चुनाव आयोग का वह इकोसिस्टम है जिसका दायरा केंद्र से लेकर राज्यों तक इतना मजबूत पकड़ बना चुका है जिससे लड़ पाना और जीत पाना किसी भी दल या नेता के लिए आसान नहीं रह गया है। अभी राहुल गांधी ने जिस भाषण में स्टेट के खिलाफ लड़ाई की बात की थी वह यही लड़ाई है। चंडीगढ़ के मेयर चुनाव से लेकर हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में इस स्टेट की संवैधानिक संस्थाओं का असली चेहरा सभी के सामने आ चुका है उसके दम पर ही भाजपा के नेता जीत की गारंटी देते हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि भाजपा ने अपने 10 सालों के शासनकाल में एक ऐसा इकोसिस्टम तैयार कर लिया है जिसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता है। अभी अल्मोड़ा और उत्तरकाशी से नोट के बदले वोट मांगने के वीडियो देखने को मिले थे। महाराष्ट्र चुनाव में एक नेता द्वारा होटल में नोट बांटने व अब दिल्ली में एक नेता के आवास से नोट बांटने की खबरें सामने आई थी। साम—दाम—दंड—भेद की राजनीति ने वर्तमान दौर की राजनीति की जो पटकथा तैयार की है वह वास्तव में जीत की एक ऐसी गारंटी बन चुका है कि उसके सामने देश का लोकतंत्र भी घुटने टेकने पर मजबूर होता दिख रहा है, और विपक्ष लाचार और कमजोर।

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