इस बार किसकी होगी दिल्ली

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चुनाव आयोग द्वारा दिल्ली के विधानसभा चुनाव का कार्यक्रम घोषित कर दिया गया है। दिल्ली विधानसभा की सभी 70 सीटों के लिए एक ही चरण में चुनाव कराया जाएगा। 5 फरवरी को सभी 70 सीटों के लिए मतदान होगा और 8 फरवरी को मतगणना होगी और यह तय हो जाएगा कि दिल्ली में किसकी सरकार बनेगी? बीते 10 सालों से दिल्ली की सत्ता पर आम आदमी पार्टी का कब्जा है। इससे पहले शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार 10 साल तक सत्ता में रही। भाजपा के लिए दिल्ली की सत्ता अब तक एक सपना ही बनी हुई है। जहां तमाम प्रयासों के बाद भी वह सत्ता तक नहीं पहुंच सकी है। देश भर में पश्चिम बंगाल और दिल्ली ही ऐसे दो राज्य हैं जहां भाजपा अब तक सत्ता तक पहुंचने में असफल रही है यही कारण है कि वर्तमान चुनाव में वह किसी भी सूरत में सत्ता हासिल करने के लिए बेचैन दिख रही है। चुनाव की तारीखों के ऐलान से पूर्व ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जो योजनाओं के लोकार्पण और शिलान्यास किए गए हैं तथा सभी 70 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की सूची जारी की गई है वह इस बात को बताने के लिए काफी है कि भाजपा दिल्ली के इस चुनाव को कितनी गंभीरता से ले रही है। वही आप संयोजक और पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल के लिए भी दिल्ली की सत्ता पर बने रहना उनकी प्रतिष्ठा का सवाल इसलिए भी बना हुआ है क्योंकि तथा कथित शराब घोटाले में जेल जाने और सीएम पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद यह कहा गया था कि जब तक जनता की अदालत में वह बेकसूर साबित नहीं कर दिए जाते हैं तब तक दोबारा सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे। अगर जनता ने उन्हें नकार दिया तो फिर उन्हें इस घोटाले के दोषी होने के दाग के साथ ही राजनीति में बने रहना होगा। दिल्ली विधानसभा के इस चुनाव में कांग्रेस द्वारा इंडिया गठबंधन की सीमाओं को तोड़ते हुए अकेले दम पर चुनाव लड़ने के फैसले ने अरविंद केजरीवाल की मुश्किलों को और भी अधिक बढ़ा दिया है। लेकिन इसके लिए अरविंद केजरीवाल खुद ही जिम्मेदार है जिन्होंने पंजाब और हरियाणा के चुनाव में कांग्रेस को दरकिनार कर दिया था। कांग्रेस के पूरे दमखम के साथ चुनाव मैदान में उतरने से दिल्ली का राजनीतिक रण त्रिकोणीय हो गया है जिसने भाजपा की राह को आसान बना दिया है। क्योंकि कांग्रेस जितनी भी सीटें जीतेगी वह आम आदमी पार्टी के कोटे की ही होगी आप के मतदाताओं में होने वाले इस विभाजन का भाजपा को सीधा फायदा मिलना तय माना जा रहा है। किसको किस स्थिति का कितना नफा या नुकसान उठाना पड़ेगा यह तो 8 फरवरी को आने वाले चुनावी नतीजे ही बताएंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के कार्यकाल का यह अंतिम चुनाव है। देखना होगा कि यह चुनाव कैसा रहता है क्योंकि बीते दिनों जो भी चुनाव हुए हैं वह मशीनी नतीजे वाले चुनाव बताए जाते रहे हैं अगर यह चुनाव भी वैसा ही रहता है तो फिर इसमें भाजपा की जीत तय है। चुनाव की स्थितियां तो नेताओं के हर बयान और भाषण के साथ बदलती रहती है अभी चुनावी घोषणाओं पर मुफ्त की रेवड़ियों का ऐलान भी बाकी है। कांग्रेस अपनी खोई जमीन को पुनः कितना हासिल कर सकेगी। क्या आप तीसरी बार सत्ता में आएगी या फिर भाजपा का सूखा समाप्त होगा? सभी सवालों का जवाब 8 फरवरी को ही मिल सकेगा।

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