मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राज्य को 2025 तक नशा मुक्त प्रदेश बनाने की बात लगातार कर रहे है। लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रदेश सरकार के सम्बन्धित विभागों द्वारा इसके लिए कोई खास योजना बनाई गई है? 2024 की विदाई में भी अब कुछ ही दिन शेष बचे है। अगर हम यह मान भी ले कि 2025 के अंत तक सीएम अपनी इस घोषणा को धरातल पर सच साबित कर देंगे तो उनके लिए और प्रदेशवासियों के लिए इससे बड़ी कोई दूसरी उपलब्धि नहीं हो सकती है। राज्य में नशा तस्करी का कारोबार लगातार फैलता जा रहा है। राज्य का कोई भी जिला अब ऐसा नहीं बचा है जहंा इन नशा तस्करों की घुसपैठ न हो। कुछ वर्ष पूर्व ट्टउड़ता पंजाब’ जैसी फिल्म जनता के सामने आयी थी जिसने इस ड्रग्स की महामारी की तरफ लोगों का ध्यान खींचा गया था किंतु आज तो देश का हर एक हिस्सा ड्रग्स की आंधी में उड़ता हुआ दिखाई देता है। अभी बीते रोज भारतीय तटरक्षक दल ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह के पास एक मछली पकड़ने वाले जहाज को पकड़ा जिसमें 6000 किलो ड्रग्स लाई जा रही थी। देश की राजधानी की तो बात ही छोड़िये, उत्तराखण्ड की राजधानी से लेकर तमाम गांवो व बस्तियां ड्रग्स का केंद्र बन चुकी हैं। अरबों—खरबों का अवैध ड्रग्स कारोबार व उसका नेटवर्क जो देश—विदेश तक फैला हुआ है उस पर नियंत्रण या लगाम लगाना कोई आसान काम नहीं है। एक उदाहरण के तौर पर अभी देहरादून के नेहरू कालोनी क्षेत्र में पुलिस ने एक महिला को भारी मात्रा में ड्रग्स के साथ पकड़ा जो बरेली से ड्रग्स लाकर उसे देहरादून में सप्लाई किया करती थी। स्कूली छात्र—छात्राओं से लेकर कूड़ा कचरा बीनने वाले बच्चों और कॉलेज के हॉस्टलों तक ड्रग्स की सप्लाई को रोक पाना पुलिस प्रशासन के लिए अत्यंत ही गंभीर चुनौती है। प्रदेश भर में इन नशा तस्करों का एक मजबूत नेटवर्क सक्रिय है। मेडिकल स्टोर से लेकर तमाम झोलाछाप डॉक्टरों जो सिर्फ नाम मात्र के लिए अपने क्लीनिक खोले बैठे हैं इस ड्रग्स के सप्लायर बन बैठे हैं। सरकार से सहायता प्राप्त कर चलाये जाने वाले नशा मुक्ति केंद्रो को उनके संचालकों द्वारा अपनी कमाई का जरिया बनाया हुआ है तथा उनका नशा मुक्ति अभियान से कोई सरोकार नहीं है। नशा एक इतना बड़ा अभिशाप बन चुका है की अधिकतर अपराधों की पृष्ठभूमि में नशा ही अहम कारण के रूप में सामने आया है। हर 10 में से एक परिवार नशे के कारण ग्रह क्लेश का शिकार है परिवार टूट रहे हैं बिखर रहे हैं। भावी पीढ़ी बर्बाद हो रही है उनका करियर चौपट हो ही रहा है वही बड़ी संख्या में नशेड़ियों की मौत व आत्महत्याओं से भी परिवार समस्याओं से घिरे हुए हैं। सवाल यह है कि क्या उत्तराखण्ड सरकार इस समस्या को इतनी गंभीरता से ले रही है कि 2025 तक राज्य को नशा मुक्त किया जा सकता है? यह वाकई सोचनीय सवाल है।