सवालों मेंं उलझा केदारनाथ उपचुनाव

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केदारनाथ विधानसभा के उपचुनाव की क्या महत्ता है? यह बात शायद भाजपा और कांग्रेस के हर नेता को बखूबी पता है। चुनाव में मुख्य मुकाबला भी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होना है। कांग्रेस अगर इस चुनाव में जीत जाती है तो उसे बहुत कुछ मिलने की संभावनाओं के द्वार खुल जाएंगे जबकि हार भी गई तो उसको कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा। या यह कहा जा सकता है कि उसके पास होने के लिए कुछ नहीं है लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है। जबकि भाजपा अगर यह चुनाव हार गई तो वह अपना कुछ खो देगी भले ही जीतने के बाद उसे मिलने वाला कुछ भी नहीं है सिवाय इसके कि सत्ता और संगठन में जो नेता शीर्ष पदों पर बने हुए हैं वह अपने पदों पर कुछ समय और बने रह पाएंगे। यही कारण है कि भाजपा जिसका सब कुछ इस छोटे से उपचुनाव में लगा हुआ है, ने अपनी पूरी ताकत इस चुनाव में झोंक दी है। अपने केंद्रीय मंत्रियों से लेकर समूची सरकार इन दिनों केदारनाथ के मैदान में उतरी हुई है। लेकिन इस सबके बीच जमीन से जो खबरें आ रही है वह भाजपा के लिए बेचैन करने वाली ही है। एक तरफ भाजपा के अंदर जो कलह है वह कांग्रेस के मुकाबले कहीं अधिक दिखाई दे रहा है। आशा नौटियाल को भले ही सबसे दमदार नेता मानकर चुनाव मैदान में उतारा गया हो लेकिन जिन भाजपा नेताओं के टिकट काट कर उन्हें टिकट दिया गया है उनकी नाराजगी आशा की आशाओं पर पानी फेर सकता है। कुलदीप रावत को भले ही भाजपा नेताओं ने फूल मालाएं पहनाकर यह मान लिया हो कि उनके समर्थकों का वोट भाजपा को ही मिलेगा लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही दिखाई दे रही है। वही श्ौला रानी की पुत्री ऐश्वर्या की नाराजगी भी जग जाहिर है। एक तरफ भू कानून का मुद्दा व मूल निवास का मुद्दा भाजपा के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बना हुआ है भले ही अब सत्ता में बैठे नेताओं द्वारा बजट सत्र में कानून लाने के बयान देकर उन्हें खबरों की हेडलाइन बनवाया जा रहा हो लेकिन जनता उन पर कितना भरोसा कर रही है इसकी असलियत भी अक्षुण्ण है। वही प्रदेश के युवाओं को अब सामूहिक रूप से नियुक्ति पत्र बांटने वाली सरकार द्वारा पुलिस में लंबे समय बाद भर्तियां निकाली गई हो लेकिन इसमें उम्र सीमा न बढ़ाये जाने और महिलाओं को स्थान न दिए जाने से युवाओं में भारी नाराजगी है। बीते समय में दो उपचुनाव हारने के बाद अब अगर तीसरे उपचुनाव में भी भाजपा को हार मिलती है तो इसके बाद सरकार और संगठन स्तर पर क्या—क्या हो सकता है यह सोच कर ही भाजपा नेताओं की नींद उड़ी हुई है। कांग्रेस भले ही धरातल पर भाजपा के मुकाबले तैयारी में कमजोर दिख रही हो लेकिन उसमें कुछ कर गुजरने की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। बाजी कौन मारने वाला है इसके लिए बस थोड़ा इंतजार ही शेष बचा है।

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