लोकसभा चुनाव से पूर्व आपने यह बात तमाम भाजपा नेताओं के मुंह से सुनी होगी कि कुछ भी हो जीतेगा तो मोदी ही। किसी देश में जहां लोकतंत्र हो और हार जीत का फैसला चुनाव परिणामों से तय होता हो तो वहां भला आप चुनाव से पहले ही परिणामों का दावा कैसे कर सकते हैं? खैर अब चुनाव भी हो चुका है और उसका परिणाम ही नहीं आ चुका है बल्कि मोदी के सत्ता में आने से यह भी साबित हो चुका है कि भाजपा के नेता जो कह रहे थे वही सत्य भी था। लेकिन भाजपा और मोदी की तीसरी बार सत्ता में जो वापसी हुई है या उन्हें जो जीत मिली है वह धोखाधड़ी से हासिल की गई जीत है। अगर चुनाव आयोग ने मतों की सही संख्या और गणना में कोई धांधली नहीं की होती तो भाजपा की जो 241 सीटें आई वह 200 से भी कम रह गई होती और स्थिति एकदम उलट होती। विपक्ष जहां बैठा है वहां सत्ता पक्ष बैठा होता और विपक्ष सत्ता पक्ष के स्थान पर बैठा दिखाई देता। अभी एक दिन पहले एडीआर तथा अन्य दो पत्रकारों द्वारा दिल्ली में प्रेस वार्ता कर इस बात का खुलासा किया गया है कि 438 सीटों पर इस चुनाव में जितने वोट डाले गए और जितने वोट गिने गए उनकी संख्या में 6 लाख वोटो का अंतर है। एडीआर का साफ कहना है कि उन्होंने जो यह आंकड़े लिए हैं कहीं और से नहीं लिए हैं चुनाव आयोग की वेबसाइट से ही लिए हैं। जब एक वोट से हार जीत हो सकती है तो फिर 5 लाख 98 हजार वोट तो बहुत होते हैं इस चुनाव में कितने प्रत्याशी ऐसे हैं जिनकी हार—जीत का अंतर कुछ सौ या कुछ हजार का ही है। लोकतंत्र में हर वोट की कीमत होती है इस बात को नकारा नहीं जा सकता है। एडीआर ने अब चुनाव आयोग से जवाब मांगा है कि जितने वोट पड़े नहीं उससे अधिक वोट कैसे गिन लिए गए। इस बार चुनाव आयोग की भूमिका पर शुरू से ही सवालिया निशान लगते रहे हैं थे। सात चरण में कराए जाने वाले इस चुनाव में आयोग द्वारा हर चरण के चुनाव के बाद वोटो की संख्या या मतदान प्रतिशत बताने में कभी 7 तो कभी 11 तो कभी 37 दिन तक समय लगाया गया। किस लोकसभा सीट पर कितने वोट पड़े क्या मतदान प्रतिशत रहा इसका ऑथेंटिक डाटा आयोग की वेबसाइट पर चुनाव परिणाम आने से पहले डाला जाना चाहिए चुनाव परिणाम आने के बाद इसका कोई मतलब नहीं रह जाता है। अब इस मामले में चुनाव आयोग कुछ देता भी है या नहीं देता है यह बात अलग है लेकिन चुनाव आयोग जिस तरह से काम कर रहा है और एक ताजा सर्वे में यह बात सामने आई है कि महज देश के 28 फीसदी लोग ही उसकी निष्पक्षता पर भरोसा करते हैं बाकी 72 प्रतिशत लोगों को चुनाव आयोग पर कोई भरोसा नहीं रह गया है। 2024 के जो भी चुनाव परिणाम आ गए और एनडीए की मोदी के नेतृत्व में एक बार फिर सरकार भी बन गई लेकिन अब लोगों को यह समझ आ चुका है कि क्यों बीजेपी के नेता यह दावा करते थे कि आएगा तो मोदी ही। आज वर्तमान दौर में यह कहने वालों की कोई कमी नहीं है कि 2024 के चुनाव को अभी 6 माह अभी नहीं बीते हैं आज अगर देश में दोबारा चुनाव करा लिया जाए तो भाजपा और उसके नेताओं को अपनी असलियत का पता चल जाएगा कि वह जिस जमीन पर खड़े हैं वह कितनी टिकाऊ और मजबूत है। दो माह बाद जिन तीन—चार राज्यों में चुनाव होने हैं वह भी भाजपा को आईना दिखाने वाले साबित होंगे।