राजनीति का मतलब भगदड़

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देश के वर्तमान राजनीतिक हालात और नेताओं का असल हाल क्या है इसे साहित्यकार सुधीश पचौरी की इन पंक्तियों से आप आसानी से समझ सकते हैं। वह कहते हैं कि सुबह लोकतंत्र बचाने वाला, दोपहर में तानाशाही से बचा रहा था वह शाम होते—होते भ्रष्टाचार बचाता दिखा। रात होते—होते वाशिंग मशीन में चला गया और अगली सुबह टिकट हाथ में लेकर मुस्कराता हुआ बाहर निकाला। नेताजी सुबह कम्युनल थे दोपहर में सेक्युलर हो गए और शाम को जातिवाद की ओर लपके और रात में लोकतंत्र बचाते दिखे। इस चला चली की बेला में जो जहां है वह वहां नहीं है। अगर आप भागते दौड़ते किसी को पकड़ ले तो वह कहता है कि मैं यहां हूं, यहां हूं, यहां हूं यहां। निश्चित तौर पर हालात ऐसे ही है। कौन कहां है क्यों कहां है और क्यों कहां नहीं है इसका कोई पता नहीं लगा सकता। क्योंकि अब किसी नेता की राजनीति किसी दल विशेष और विचारधारा के साथ जुड़ी नहीं रह गई है। वर्तमान दौर की राजनीति को विचारधारा के साथ व्यभिचार की राजनीति कहा जाना भी शायद अतिशयोक्ति नहीं होगा। यूं तो देश की राजनीति से विचारधारा के विलुप्त होने का श्री गणेश 1970 के दशक में ही गठबंधन की राजनीति से शुरू हो चुका था लेकिन 2024 आते—आते अब यह अपने चरम पर पहुंच चुका है। इसकी प्रकाष्ठा का उदाहरण बिहार की राजनीति और नीतीश कुमार जैसे नेताओं के हर तीसरे दिन सरकार बदलने और आठवीं बार सीएम पद की शपथ लेने के रूप में हमारे सामने है। जिन्हें लेकर देश की राजनीति में पलटू राम शब्द चलन में आ गया है। लेकिन नीतीश कुमार तो सिर्फ एक उदाहरण मात्र है अब तो इस देश की राजनीति में इन पलटूरामों की गिनती करना भी मुश्किल हो गया है अभी दो दिन पहले खबर आई थी कि उत्तराखंड के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिनेश अग्रवाल अपनी उपेक्षा से इतने नाराज हैं कि वह कांग्रेस छोड़ने जा रहे हैं। तमाम कांग्रेसी नेता उन्हें मनाने का प्रयास करते रहे लेकिन वह नहीं माने और कांग्रेस से इस्तीफा देकर कल भाजपा में शामिल हो गए। तमाम कांग्रेसी नेता कह रहे हैं कि कांग्रेस में रहते हुए उन्हे क्या नहीं मिला? सब कुछ तो उन्हें कांग्रेस से मिला लेकिन खुद दिनेश अग्रवाल कहते हैं कि कांग्रेस में उनकी उपेक्षा हो रही थी और वह पीएम मोदी की नीतियों से प्रभावित होकर भाजपा में शामिल हुए हैं। क्या कोई भी उनकी इस बात पर भरोसा कर सकता है बिल्कुल भी नहीं। उनके भाजपा में जाते ही एक सवाल यह भी चर्चाओं के केंद्र में आ गया है कि क्या वह ईडी व सीबीआई से डर कर भाजपा में गए हैं इस पर खुद दिनेश अग्रवाल ही सफाई दे रहे हैं कि उनके रिजार्ट में कुछ भी गलत नहीं है किसी से भी जांच करा लो। पूर्व वन मंत्री दिनेश अग्रवाल को पता है कि भाजपा की सरकार रहते तो उनकी जांच कोई करा नहीं सकता। दुर्भाग्य से अगर कांग्रेस सत्ता में लौट आई तो उनकी जांच हो सकती है लेकिन यह अभी हवा हवाई बातें हैं। जांच के इस चक्र में तो अभी डा. हरक सिंह फंसे हैं जिनके लिए भाजपा ने भी अब दरवाजे बंद कर दिए हैं। 2024 के बाद इस देश की राजनीति की दिशा और दशा क्या होगी इस सवाल का जवाब 4 जून को ही मिल सकेगा इसलिए अब सिर्फ इंतजार कीजिए।

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