आज के लोकतंत्र का सच

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आखिरकार कल बीती रात गिरफ्तार कर ही लिया गया। देश के इतिहास में यह पहला ऐसा मामला है जब किसी मुख्यमंत्री को पद पर रहते हुए गिरफ्तार किया गया है। उनकी गिरफ्तारी की संभावना तो बहुत पहले से जताई जा रही थी क्योंकि ईडी द्वारा उन्हें गिरफ्तारी से पूर्व नौ बार सम्मन जारी किए गए थे। ईडी के इन सम्मनों के खिलाफ केजरीवाल ने इन्हें असवैधानिक बताते हुए हाईकोर्ट में केस भी फाइल कराया गया है। जिस पर सुनवाई की जा रही है लेकिन इसी बीच हाई कोर्ट द्वारा उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इन्कार किए जाने के बाद ईडी की टीम ने बीती रात उन्हें उनके आवास से गिरफ्तार कर लिया है। उनकी गिरफ्तारी लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के बाद की गई है जिससे एक बात साफ है कि उनकी गिरफ्तारी का मकसद चुनाव को प्रभावित करने से जुड़ा हुआ है। जिस आबकारी नीति से जुड़े धन शोधन के मामले में दिल्ली की केजरीवाल सरकार के कई मंत्री (मनीष सिसोदिया और संजय सिंह) कई महीनो से जेल में बंद है। उन्हें भले ही जमानत नहीं मिली हो लेकिन ईडी को उनके यहां से छापेमारी अथवा जांच में धन शोधन के कोई पुख्ता सबूत तो मिले ही नहीं है उनके पास से किसी भी तरह के धन की बरामदगी भी नहीं हुई है। अभी उनकी जमानत पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने ईडी से पूछा था कि आपने इन्हे जेल में तो डाल दिया क्या इसके कोई सबूत भी आपके पास है? जिसका कोई जवाब ईडी के पास नहीं था। आम आदमी पार्टी के नेता अभी भी यही कह रहे हैं कि यह राजनीतिक विद्वेष की कार्यवाही है ईडी के पास न कोई सबूत है न बरामदगी। एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि लोकसभा चुनाव के दौरान जब देश में चुनाव आचार संहिता लागू है तो इस कार्यवाही का मकसद क्या है? आम आदमी पार्टी इंडिया गठबंधन का हिस्सा दिल्ली में है, वह कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। पंजाब में उसकी सरकार और दबदबा है। ऐसे में अगर आम आदमी पार्टी के नेता चुनाव के समय जेल में होंगे तो पार्टी कैसे चुनाव लड़ पाएगी? ईडी की कार्रवाई कितनी निष्पक्ष होती है इसका प्रमाण कर्नाटक के नेता डीके शिवकुमार भी है जिन्हें ईडी ने 4 महीने से जेल में बंद कर रखा। और 4 महीने बाद निर्दाेष साबित होने पर वह जेल से बाहर आ सके। यह बात पूरा देश जानता है और देश की जनता भी जान समझ रही है कि ईडी और सीबीआई का इस्तेमाल सत्तारूढ़ सरकार द्वारा कैसे किया जा रहा है और उसका मकसद क्या है? अगर ईडी और सीबीआई द्वारा ऐसी निष्पक्ष कार्यवाही की जाती है तो चुनावी बांड घोटाले में उन कंपनियों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही है जिनकी सालाना आय भी 2000 करोड़ की नहीं और चुनावी चंदा वह 2000 करोड़ दे रहे है। बीते 10 सालों में ईडी ने भाजपा के कितने नेताओं को अब तक जेल भेजा है या उनके यहां छापेमारी की है या फिर सारे भ्रष्टाचारी और अपराधी सिर्फ विपक्ष में बैठे हुए हैं। जिन्हें जेल में डालकर सरकार केंद्र में विपक्ष रहित सरकार बनाने की कोशिशों में जुटी हुई है। या फिर सत्ता में बैठे लोगों को इस बात का डर सताने लगा है कि 2024 में अगर सत्ता गई तो उनके लिए मुश्किलें बढ़ाने वाली हैं। निर्वाचन आयोग से लेकर ईडी और सीबीआई ही नहीं उन तमाम स्वायत्तता धारी संस्थाओं को भी इस बात पर विचार मंथन की जरूरत है कि वह सत्ता के संरक्षण नहीं लोकतंत्र के संरक्षण के लिए बनी है और अगर इस जिम्मेवारी को वह पूरा नहीं करेगी तो यह देश के लोकतंत्र व संविधान के साथ एक धोखा है जिसकी कीमत उन्हें भी चुकानी पड़ेगी आज नहीं तो कल।

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