भले ही अभी निर्वाचन आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव की तिथियों का ऐलान न किया गया हो लेकिन राजनीतिक दलों ने चुनावी विसात पर मोर्चा संभाल लिया है। भाजपा ने 195 प्रत्याशियों की जो सूची जारी की है वह यह बताने के लिए काफी है कि वह चुनावी तैयारियों में दूसरे दलों से अव्वल है अबकी बार 400 पार के नारे की तरह यह भी विपक्षी दलों पर एक मनोवैज्ञानिक तौर पर बढ़त हासिल करने का तरीका ही है। उधर विपक्षी गठबंधन ने भी बीते कल पटना के उस ऐतिहासिक गांधी मैदान से जहां से अब तक बदलाव के तमाम आंदोलनों की शुरुआत होती रही है जन विश्वास रैली के आयोजन के साथ चुनावी बिगुल फूंक दिया गया है। इस रैली में उमड़ी रिकॉर्ड भीड़ से यह स्पष्ट हो गया है कि जो लोग इस 2024 के मुकाबले को पूरी तरह से एक तरफा माने बैठे थे उनकी सोच गलत थी। 2024 में एक ऐसा महा मुकाबला इंडिया गठबंधन और सत्तारूढ़ एनडीए के बीच होने वाला है जिसमें अच्छे—अच्छे राजनीतिक विशेषज्ञों के दावे गलत साबित हो जाएंगे। कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्री परिषद के सदस्यों के साथ जो आखिरी बैठक की उसमें भले ही अपनी सत्ता में वापसी का भरोसा और 2047 तक विकसित भारत का खाका खींचा गया हो लेकिन विपक्ष भाजपा सरकार के उन तमाम वादों को लेकर जनता के सामने है जो सिर्फ और सिर्फ झूठ ही साबित हुए हैं अच्छे दिन लाने का वायदा कर सत्ता मे आयी सरकार के बारे में विपक्ष जनता से पूछ रहा है कि क्या उनके अच्छे दिन आए? क्या उन्हें महंगाई से निजात मिल गई जो गैस सिलेंडर 450 रूपये का खरीदते थे वह कितने में मिल रहा है दाल आटे और सब्जियों के भाव क्या है और पेट्रोल डीजल कितने रुपए लीटर है वह युवाओं से पूछ रहा है कि नौकरी मिली क्या? या पकोड़े ही चल रहे हो गरीबों से विपक्ष पूछ रहा है क्या मोदी ने तुम्हारे खाते में 10 लाख डाले? विपक्ष व्यापारियों से पूछ रहा है कि अब तक क्या जीएसटी का मतलब उनकी समझ में आया क्या। वह मीडिया से भी पूछ रहा है कि विपक्ष का समाचार दिखाना है या नहीं क्या उन्होंने मोदी से पूछ लिया है? विपक्ष किसानों से भी सवाल कर रहा है कि क्या आपकी आय दो गुना हो गई? अगर हो गई है तो क्यों सड़कों पर पड़े हो। विपक्ष के यह सवाल शायद अब जनता की समझ में आने लगे हैं राहुल गांधी की सामाजिक न्याय यात्रा और अब इंडिया गठबंधन की पटना महारैली में उमड़ने वाली भीड़ तो यही संकेत दे रही है। विपक्ष की सोच जनता की समस्याओं के इर्द—गिर्द घूम रही है जबकि सत्तारूढ़ दल मंदिर मस्जिद और सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण विकसित भारत और राष्ट्र वाद के एजेंडें के चारों ओर चक्कर काटता दिख रहा है। हालत कुछ—कुछ 2004 के सााइनिंग इंडिया के दौर जैसा ही दिखाई दे रहा है। जब अटल बिहारी और आडवाणी के नेतृत्व वाली भाजपा को इंडिया चमचमाता दिख रहा था। 2024 में भी भाजपा के विकसित भारत को जनता कैसे देखती है और वह अपना कितना विकास महसूस कर रही है बीते 10 साल में। इसका फैसला 2024 के चुनाव परिणाम के रूप में अब जनता को ही करना है।