उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से तमाम सरकारी विभागों में कर्मचारियों की कमी को पूरा करने के लिए दैनिक वेतन, तदर्थ और संविदा पर बड़ी संख्या में कर्मचारी को काम पर रखे जाने की एक रवायत जारी रही है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन कर्मचारियों को किसी संवैधानिक चयन संस्था द्वारा चयनित नहीं किये जाने के कारण तमाम अयोग्य लोग भी सरकारी सेवा में आने में कामयाब हो गए वहीं शासन—प्रशासन में बैठे लोगों का फायदा उठाने वालों ने इसका भरपूर लाभ भी उठाया लेकिन इन कर्मचारियों को राज्य में 10—15 सालों तक सेवाएं देने के बावजूद भी नियमित न किया जाना इन कर्मचारियों के साथ अन्याय ही कहा जा सकता है। भले ही उन्होंने यह नौकरी अपने रसूखों के जरिए पाई हो या किसी अन्य सोर्स सिफारिश से लेकिन उन्होंने सरकार को अपनी सेवाएं दी है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। सरकार और अदालत के फैसलों के बीच इन कर्मचारियों का भविष्य जिस तरह से बीते 18—20 सालों से अधर में लटका हुआ है वह कतई भी ठीक नहीं कहा जा सकता है। हाई कोर्ट द्वारा इन कर्मचारियों के नियमितीकरण पर लगी रोक को हटाते हुए 10 साल से अधिक समय से काम करने वाले सभी कर्मचारियों को नियमित करने के आदेश दिए गए हैं जिससे राज्य के 10 हजार के आसपास कर्मचारियों के नियमित होने का उम्मीदें एक बार फिर बढ़ गई है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि न्यायालय द्वारा तो इस मुद्दे पर पहले भी फैसला दिया गया था जिसे सरकार ने नहीं माना था। दरअसल राज्य की सरकारों द्वारा अपने—अपने हिसाब और सुविधाओं के अनुसार इन्हें इस्तेमाल किया जाता रहा है कभी कोई सरकार इन्हें 5 साल काम करते हुए, कोई सरकार 10 साल काम करने के आधार पर नियमित करने या उनका सेवाकाल घटा व बढ़ाकर अथवा उनको वेतन और अन्य सुविधाएं देकर इन कर्मचारियों को बहलाती रही है। लेकिन उनकी स्थाई समस्या का समाधान किसी ने भी नहीं किया है अब एक बार फिर हाई कोर्ट द्वारा इन्हें स्थाई करने का जो फैसला दिया गया है वही सही मायने में इन कर्मचारियों की तमाम समस्याओं का सही समाधान है। अब देखना यह है कि चुनावी दौर में आये इस अदालती फैसले पर सरकार कब और कैसे अमल करती है। क्योंकि 15 दिन के अंदर चुनाव आचार संहिता भी लागू होने वाली है। जिसके बाद सरकार पर तमाम पाबंदियां भी लग जाएगी। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह फैसला उन तमाम कर्मचारियों के लिए सही है जो तदर्थ या फिर संविदा पर 10 साल से भी अधिक समय से काम कर रहे हैं। जहां तक राज्य में सरकारी नौकरियों के बंदर बांट का सवाल है वह भी किसी से नहीं छिपा है। एक तरफ रसूखदारों ने बैकडोर से अपने परिजनों व रिश्तेदारों को सरकारी नौकरी दिलाने का काम किया जाता रहा है वहीं भर्तियों में भी भारी धांधली होती रही है। अकेले शिक्षा विभाग में सैकड़ो की संख्या में फर्जी दस्तावेजों से लोगों ने शिक्षकों की नौकरियां पा ली। विधानसभा और सचिवालय में बैठे लोगों ने न जाने कितने अपने लोगों को नौकरियों पर लगवा दिया। खैर जो अनियमित कर्मचारी है वह अगर नियमित हो जाते हैं तो उनकी जिंदगी का अंधेरा जरूर दूर हो जाएगा। कोर्ट का यह फैसला उनके लिए बड़ी राहत वाला फैसला है।