किसान आंदोलन में उलझी सरकार

0
87


दो साल पहले की तरह एक बार फिर किसानों द्वारा दिल्ली बॉर्डर पर डेरा डाल दिया गया है। दिल्ली की सीमाएं सील है बॉर्डर पर पुलिस फोर्स तैनात है। कटीले तार और सीमेंट पोल के साथ—साथ सड़कों पर कीलें ठोक दी गई है। ताकि किसान दिल्ली की सीमा में प्रवेश न कर सके। केंद्र सरकार और किसानों के बीच जिस तरह संघर्ष इन दिनों पंजाब व हरियाणा बॉर्डर पर देखा जा रहा है वह किसी युद्ध जैसे हालात का एहसास कराने वाला है। जमीन और आसमान से बरसते अश्रु गैस के गोलों से धुआं धुआं हुआ वातावरण और पुलिस की गोलियों की तड़तड़ाहट और अपनी जान की सुरक्षा के लिए भेड़ बकरियों की तरह इधर—उधर दौड़ते किसानों को देखकर हर कोई हैरान है कि देश के अन्नदाताओं के साथ आखिर यह हो क्या रहा है। बीते कल एक युवा 22 वर्षीय किसान की इस संघर्ष के दौरान गोली लगने से मौत हो गई पुलिस ने आंदोलनकारी किसानों के दो दर्जन से अधिक ट्रैक्टरों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। एक बड़ी संख्या में किसानों के लापता होने की बात भी कहीं जा रही है। सरकार एक तरफ किसानों से वार्ता कर रही है वहीं दूसरी तरफ वह दमनात्मक कार्यवाही कानून व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर कर रही है किसानों के बैंक अकाउंट से लेकर उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर ताले डाले जा रहे हैं। 2021—22 के किसान आंदोलन के दौरान 750 से अधिक किसानों की जान गई थी सालों लंबे चले आंदोलन के दौरान किसान नेताओं की 15 दौर की लंबी वार्ता चली थी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्षमा मांगते हुए उन तीन कृषि कानूनों को वापस तो ले लिया गया था लेकिन किसानों की एमएसपी गारंटी कानून की मांग पर विचार करने की बात कह कर टाल दी गई थी। किसानों को लगता है कि सरकार उनकी मांग को मानने वाली नहीं है यही कारण है कि वह चुनाव से पूर्व दिल्ली की ओर चल पड़े हैं। लेकिन बॉर्डर पर किसानों की घेराबंदी की जा रही है। किसान किसी भी तरह घर लौटने को तैयार नहीं है और सरकार एमएसपी पर गारंटी कानून लाने को तैयार नहीं है ऐसी स्थिति में सरकार एक बार फिर किसानों को वार्ता में उलझा कर समय को लंबा खींचती दिख रही है लेकिन बेचैनी इस बात को लेकर है कि चुनाव सर पर है। किसानों के साथ यह टकराव अगर आगे बढ़ा तो इसके परिणाम अच्छे नहीं रहने वाले। किसानों द्वारा सरकार के रवैया के खिलाफ आज काला दिवस घोषित किया गया है तथा 26 फरवरी को ट्रैक्टर मार्च की घोषणा कर दी गई है। सरकार ने 2016 में किसानों की आय दो गुना करने का वायदा किया था सरकार की मंशा थी कि वह कृषि क्षेत्र को कॉर्पाेरेट के हवाले कर देश के किसानों को खेतीहर मजदूर बना दे लेकिन किसानों ने यह नहीं होने दिया। सरकार जिस विकसित भारत की बात कर रही है या शगुफा छोड़ रही है वह न तो बिना किसानों के संभव है और न 10 फीसदी विकास दर के संभव है सरकार को सिर्फ कृषि क्षेत्र में कॉर्पाेरेट के निवेश से ही अपना लक्ष्य पूरा होता दिख रहा है लेकिन वह अब किसान होने नहीं देंगे जो अब सरकार के लिए मुसीबत बना है। एमएसपी की कानूनी गारंटी सरकार कारपोरेट के दबाव में दे नहीं पा रही है। तब उसके पास किसानों पर लाठी डंडे बरसाने व अश्रु गैस के गोले दागने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है किंतु इस विकल्प से लोकसभा चुनाव में खेल खराब हो सकता है। यह देखना होगा कि सरकार अब किसानों से कैसे निपटती है या किसान सरकार से कैसे निपटते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here