उत्तराखंड विधानसभा से यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल को पारित कर दिया गया है। राज्य में यूसीसी लागू करने की घोषणा से लेकर उसे लागू होने तक सब कुछ मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व में किया जा रहा है। इसलिए इसका श्रेय भी उन्हें ही दिया जा रहा है। अब जब यूसीसी बिल को विधानसभा से पास किया जा चुका है तब इसे लागू होने के रास्ते में कोई बाधा नहीं बची है और उत्तराखंड देश का यूसीसी लागू करने वाला पहला राज्य होगा इसमें भी कोई संदेह नहीं बचा है। जम्मू कश्मीर से धारा 370 को समाप्त करने और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण करने के बाद अब भाजपा ने मुख्यमंत्री धामी के जरिए यूसीसी लागू करने के अपने तीसरे बड़े लक्ष्य को भी 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व हासिल कर लिया है। मुख्यमंत्री धामी ने सदन में बड़े विस्तार से सब कुछ बताया कि यह बिल लाया जाना क्यों जरूरी था? क्यों यूसीसी बिल खास है? यही नहीं उन्होंने इसके साथ यह सवाल भी उठाया कि इसको अब तक क्यों नहीं लाया गया? उनका कहना है कि यूसीसी लागू होने से किसी के भी मौलिक अधिकार प्रभावित नहीं होंगे अपितु यूसीसी सभी जातियों धर्मो और संप्रदायों के अधिकारों को कानूनी तौर पर मजबूती देगा और उनका संरक्षण करेगा। उन्होंने इसे केंद्र सरकार द्वारा लाये गये नारी वंदन बिल, जिसमें महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देकर सशक्त बनाने का काम किया गया है, की तरह ही यूसीसी महिलाओं के साथ होने वाले किसी भी तरह के अन्याय के खिलाफ कानूनी तौर पर उन्हें और अधिक मजबूत बनाएगा। अब किसी के लिए भी महिलाओं पर अन्याय करना आसान नहीं होगा। उनका कहना है कि सभी धर्मो, संप्रदायों और जातियों के लिए अब एक जैसा ही कानून होगा। लिंग भेद के लिए भी कोई स्थान नहीं होगा। यूसीसी के ड्राफ्ट की कानूनी बारीकियों को समझने और सब कुछ जानने के लिए काफी समय लगेगा। इसलिए सरकार के पास समय कम था और उसने विपक्ष को भी सवाल उठाने का मौका नहीं दिया लेकिन इस बिल के निःतार्थ में भी भाजपा का अबकी बार 400 पार का लक्ष्य ही छिपा है जो बिना आधी आबादी यानी महिलाओं के वोट पर एकाधिकार के बिना संभव नहीं दिख रहा था इसलिए न सही पूरे देश में, उत्तराखंड में परीक्षण के रूप में ही सही यूसीसी लागू हो जाएगा। जिसे लेकर सीएम धामी भी अब भाजपा और संघ की सूची में खास हो चुके हैं। और उत्तराखंड यूसीसी लागू करने वाला पहला राज्य। एक देश एक विधान कोई नई सोच नहीं है। संविधान निर्माता अंबेडकर ने भी उस समय समान कानून पर विमर्श किया था। धामी के यूसीसी में चार फीसदी जनजातियों को इसके दायरे के क्यों बाहर रखा गया जब सबके लिए समान कानून की बात हो रही है क्या सिर्फ उत्तराखंड में यूसीसी लागू होना ही काफी है पूरे देश में जब तक यह लागू नहीं होता इसका कोई औचित्य नहीं है। फिलहाल इसे सिर्फ चुनावी मुद्दा ही समझा जा सकता है, इससे अधिक कुछ नहीं।