कानून व्यवस्था की चुनौती

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उत्तराखंड जो कभी अपनी शांत वादियों और सुरक्षा के लिहाज से एक मिसाल माना जाता था अब उसके लिए कानून व्यवस्था और जन सुरक्षा का मुद्दा एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। राज्य में बढ़ते अपराधों को रोकने में शासन—प्रशासन नाकाम साबित हो रहा है वहीं बदमाशों के हौसले इस कदर बढ़ चुके हैं कि वह कहीं भी कभी भी किसी भी वारदात को अंजाम देने से नहीं हिचकते हैं। बीते कल हल्द्वानी में कुछ युवकाें द्वारा एक युवती को जबरन कार में घसीट कर बैठा दिया गया और तीन—चार घंटे तक उसे शहर की सड़कों पर घूमाते रहे। इस दौरान युवती से आरोपियों द्वारा चलती कार में ही सामूहिक बलात्कार भी किया गया और युवती को एक चौराहे पर कार से उतार कर कार हो गए। वहीं बीते कल ही विकासनगर में शाम 6 बजे एक ज्वेलर्स के यहां सशस्त्र बदमाशों ने लूट का प्रयास किया। गनीमत रही कि पड़ोसी दुकानदारों के आ जाने से बदमाश अपने मंसूबों में सफल नहीं हो सके और स्थानीय लोगों ने एक बदमाश को दबोच कर पुलिस के हवाले कर दिया। बीते कल पुरोला की तर्ज पर बड़कोट के दुकानदारों व स्थानीय लोगों को बाजार बंद कर लव जिहाद के खिलाफ सड़कों पर उतरना पड़ा। घटनाक्रम के अनुसार बरेली का एक दूसरे समुदाय के युवक द्वारा दो लड़कियों को बहला फुसला कर अपने साथ ले जाया गया। पुलिस के अनुसार उसने दोनों लड़कियों को बरामद कर लिया है। सवाल इन लड़कियों को बरामद कर लिए जाने का नहीं है सवाल यह है कि जिस मुद्दे को लेकर अभी बीते साल उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली में इतना लंबा आंदोलन और संघर्ष जारी रहा था उसके बावजूद भी इस तरह की घटनाएं अविराम जारी हैं। ऋषिकेश के वंनत्रा रिजार्ट कर्मी अंकिता हत्याकांड के बाद भी उत्तरकाशी के होमस्टे में एक युवती की मौत होना और अब हल्द्वानी में एक युवती को अगवा कर चलती कार में उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना क्या यह बताने के लिए काफी नहीं है कि प्रदेश की कानून व्यवस्था पर शासन प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं रहा है। पुलिस प्रशासन भले ही राजपुर रोड पर ज्वेलरी शॉप में दिनदहाड़े हुई डकैती की घटना के खुलासे को अपनी कामयाबी मान रहा हो लेकिन क्या बदमाशों को पकड़ लेना ही कामयाबी है या किसी अपराध का खुलासा कर लेना ही पुलिस की उपलब्धि है। यूं तो अब पुलिस ने हल्द्वानी में अपहरण और दुराचार के चार में से दो आरोपियों को पकड़ लिया है तथा विकास नगर में लूट के प्रयास के आरोपी भी पकड़े जा चुके हैं लेकिन अगर इस तरह की आपराधिक वारदातों को रोका नहीं गया तो फिर यह भला कैसी कामयाबी है। शासन प्रशासन के स्तर पर इन दिनों महिलाओं की सुरक्षा और उनके सशक्तिकरण के बड़े—बड़े दावे किए जा रहे हैं लेकिन प्रदेश में महिलाएं कितनी सुरक्षित है हल्द्वानी की घटना और बड़कोट की घटना इसकी ताजा मिसाल है। पुलिस जब इस तरह के अपराधों को रोक नहीं पाएगी सामाजिक सुरक्षा का सवाल हमेशा सवाल ही बना रहेगा। बढ़ते अपराधों के कारण अगर जनता में भय और आक्रोश है तो वह बेवजह नहीं है। सरकार और सत्ता में बैठे लोगों को इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है अभी मसूरी में एक बदमाश को पकड़ने गई पुलिस पर हुए हमले और उसमें एक दारोगा के घायल होने व उसके साथियों द्वारा घायल दरोगा को छोड़कर भाग जाने को लेकर भी पुलिस की खूब किरकिरी हुई थी। निश्चित तौर पर पुलिस को अपनी कार्यश्ौली व कार्य प्रणाली में बड़े बदलाव की जरूरत है। भय मुक्त समाज की बात सिर्फ बातों तक किया जाना ठीक नहीं है सामाजिक सुरक्षा भी एक बड़ा मुद्दा है।

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