केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार वैष्णव ने कहा है कि 10 दिन के अंदर डीप फेंक से निपटने के लिए प्रभावी योजना लाई जाएगी। उनका कहना है कि केंद्र सरकार कानूनी प्रावधानों का मसौदा तैयार कर रही है जिससे गलत सूचनाओं पर अंकुश लगाया जा सकेगा। संचार और प्रौघोगिकी के इस क्रांतिकारी दौर में फेक बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी) फेक वास्तविकता (वर्चुअल रियलिटी) फेक तथ्य (पोस्ट टूथ) का चलन इस कदर बढ़ चुका है कि अब सच क्या है और झूठ क्या है इसका अनुमान लगाना भी किसी के लिए संभव नहीं रह गया है। यह कहना भी इस दौर में अनुचित नहीं होगा कि फेक (महा झूठ) का चलन इतना ज्यादा बढ़ चुका है कि लोग वर्तमान सदी को ही फेक सदी के रूप में प्रचारित करने लगे हैं। यह समझने की बात है कि अगर आने वाली पीढ़ी जो अवास्तविक है उसे ही सच और वास्तविक मान लेती है तो हमारा समाज और सामाजिक स्थितियां क्या होगी। कृत्रिम इंटेलिजेंसी के माध्यम से इन दिनों ऐसे वीडियो बनाएं और वायरल किये जा रहे हैं जो किसी भी बड़ी से बड़ी हस्ती के चरित्र को तार—तार करने की ताकत रखते हैं। इसी साल एक तेलुगू अभिनेत्री रश्मिका मंडाना का जो अमर्यादित वीडियो वायरल हुआ था वह इसका एक उदाहरण मात्र है। खास बात यह है कि जब तक किसी व्यक्ति को इसके बारे में जानकारी हो पाती है तब तक लाखों और करोड़ों लोगों तक आपके बारे में यह गलत जानकारी पहुंच जाती है और आप अपनी इज्जत बचाने के लिए कुछ भी नहीं कर पाते हैं। इन दिनों एक के बाद एक कई अभिनेत्रियों के अश्लील वीडियो वायरल किये जा चुके हैं। ऐसी स्थिति में इस समस्या का समाधान खोजा जाना जरूरी है। इन फेक वीडियो के माध्यम से कोई एक तरह के अपराधों को अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा रहा है यह कई तरह के अपराधों में कारगर सिद्ध हो रहा है किसी को ब्लैकमेल करने का भी यह एक नायाब तरीका बन चुका है। कोई भी विज्ञान, तकनीक या अनुसंधान सिर्फ तब तक ही कल्याणकारी सिद्ध होता है या रहता है जब तक उसका इस्तेमाल जनहित और कल्याण के लिए किया जाता है। जब इसका इस्तेमाल गलत उद्देश्यों के लिए किया जाना ही प्राथमिकता बन जाए ऐसे में इसके दुष्परिणामों से नहीं बचा जा सकता है। एक गलत सूचना क्या कुछ कर सकती है इसे बताने की जरूरत नहीं है। बीते कुछ समय से जब भी जहां भी कोई दंगा आदि होता है उसे क्षेत्र की इंटरनेट सेवाओं को बंद करने की जरूरत इसलिए पड़ती है कि गलत सूचनाओं का आदान—प्रदान समस्या को और अधिक बढ़ा सकता है। अगर बात राजनीति की करें तो फेक वायदों का चलन राजनीति में तभी से जारी है जब से चुनाव की शुरुआत हुई। आपको याद होगा कि एक बार पीएम मोदी को कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने फेकू पीएम कह दिया था। 10 साल पहले जब भाजपा लोकसभा चुनाव में उतरी थी तब उसने विदेश में जमा काले धन को वापस लाने और हर गरीब के खाते में 10—10 लाख डालने का प्रचार किया था। यह बीजेपी का जनता से किया गया एक फेक वायदा था। जिस पर बाद में जब विपक्ष व मीडिया ने सवाल उठाए थे तो भाजपा नेताओं ने इसे चुनावी शगुफा बता कर अपना पल्ला झाड़ लिया था। आज भी जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उनमें एक नहीं तमाम राजनीतिक दलों द्वारा यह भी फ्री और वह भी फ्री, के तमाम वायदे और दावे, गारंटी और वारंटी बताये जा रहे हैं। कौन कितनी मुफ्त की रेवड़ियां बांट सकता है? चुनाव जीतने और हारने का मापदंड बन चुका है। भला हो अश्वनी वैष्णव का जिन्होंने फेंक के और फेकूओं के खिलाफ प्रभावी उपाय करने और कानून बनाने का बात कही है। उनका यह कदम स्वागत योग्य है। लेकिन देखना होगा कि उनके द्वारा किए जाने वाले प्रयास से यह कानून कितने कठोर हो पाते हैं। अगर इसे रोकने के अभी सख्त इंतजाम नहीं किए गए तो आने वाला समय अत्यंत थी दुश्वारियों भरा रहेगा इसमें कोई संदेह नहीं है।