उत्तराखंड में हो रही बेमौसम बारिश और बर्फबारी ने सिर्फ आम जनजीवन को ही प्रभावित नहीं किया है बल्कि इसका प्रभाव राज्य की आर्थिकी पर भी पड़ा है। इस बेमौसम बारिश और बर्फबारी ने सबसे अधिक नुकसान किसानों को पहुंचा है, वहीं बागवानी भी चौपट हो चुकी है। लीची, आम और सेब की फसल को भी इससे भारी नुकसान हुआ है। एक अनुमान के अनुसार 50 फीसदी फसलें खराब हो चुकी हैं। इस बार बाजार में आम और लीची का स्वाद आम आदमी चख भी सकेगा इसकी संभावनाएं अत्यंत ही कम दिखाई दे रही हैं क्योंकि पेड़ों पर अब आधे भी आम और लीची शेष नहीं बचे हैं और जो बचे हैं वह खराब होते जा रहे हैं। इस खराब मौसम में बागवानी की एक चौथाई फसल बोर के समय ही खराब हो चुकी थी। राज्य में होली के बाद से ही लगातार बारिश और बर्फबारी के कारण गेहूं, जौ, मटर तथा तिलहन की फसलों को भारी नुकसान हुआ है। खेतों में तैयार खड़ी फसल को काटने का मौका अभी तक मौसम ने नहीं दिया है जहां फसल की कटाई शुरू हो गई वहीं उसकी गुड़ाई का अवसर तक किसानों को नहीं मिल सका है, ऐसी स्थिति में या तो पकी हुई फसल खेतों में खड़ी ही नष्ट हो रही है या पड़ी हुई नष्ट हो रही है। खास बात यह है कि किसानों की फसल के बीमे की जितनी बड़ी—बड़ी बातें की जाती है धरातल पर वैसा कुछ भी दिखता नहीं है। सरकार द्वारा किसानों को जो क्षति पूर्ति की जाती है वह कितनी मिल पाती है? यह एक बड़ा सवाल है। भले ही राज्य के कृषि मंत्री द्वारा इस क्षति का आकलन कराने के निर्देश देने की बात कही जा रही हो लेकिन इसका आकलन करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है क्योंकि यह नुकसान पूरे प्रदेश के किसानों और बागवानों को हुआ है। अगर सरकार द्वारा इनको क्षतिपूर्ति के तौर पर थोड़ा—थोड़ा भी दिया गया तो यह लाखों करोड़ होगा, इसलिए इसकी उम्मीद सरकार से किया जाना भी संभव नहीं है। सरकार अब इन किसानों की क्या मदद कर पाती है यह आने वाला समय ही बताएगा। बात सिर्फ किसानों के नुकसान तक ही सीमित नहीं है यह खराब मौसम व्यवसायियों पर भी भारी पढ़ रहा है। खराब मौसम ने व्यवसाय और पर्यटन को भी हतोत्साहित किया है। बात अगर चार धाम यात्रा की ही करें तो चार धाम यात्रा पर तो इस समय सिर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। चार धाम यात्रा शुरू होने के साथ ही सूबे के मौसम में आए बड़े बदलाव ने इस यात्रा में अनेक व्यवधान खड़े कर दिए हैं। अब तक भले ही 10 दिनों में तीन लाख के आसपास यात्री सभी चारों धामों में पहुंचे हो लेकिन यह यात्री जान हथेली पर रखकर ही धामों तक पहुंचे हैं। कभी इस खराब मौसम के कारण यात्रा को रोक दिया जाता है तो कभी रजिस्ट्रेशन रोकने पढ़ रहे हैं। यात्रियों को जो असुविधा और परेशानियां हो रही है उसका गलत संदेश जा रहा है वह अलग बात है। अगर मौसम सामान्य रहा होता तो आने वाले दिनों में यात्रियों की संख्या के साथ सरकार व पर्यटन उघोग से जुड़े लोगों को भी फायदा होता। राज्य में इस खराब मौसम का सिलसिला कब तक जारी रहेगा कहा जाना मुश्किल है। खास बात यह है कि पहाड़ों में जिन विकास कार्यों को सिर्फ ग्रीष्म काल में ही बेहतर किया जा सकता था वह तमाम काम अब तक अधर में ही लटके हैं और इन को पूरा करने के लिए अब बहुत कम समय बचा है।