मुफ्त की रेवड़ी वाली राजनीति

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भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बीते कुछ दिनों से अपनी चुनावी सभाओं में मुफ्त की रेवड़ियों की राजनीति करने वालों से लोगों को सावधान रहने की नसीहतें दी जा रही हों लेकिन वर्तमान की राजनीति के इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अब देश की राजनीति मुफ्त की रेवड़ियों के रास्ते पर निकल पड़ी हैं तथा आने वाले समय में सरपट दौड़ती दिखेंगी। कल भाजपा और कांग्रेस द्वारा कर्नाटक चुनाव के लिए जो अपना—अपना मेनिफेस्टो जारी किया गया है अगर उन पर एक नजर डालें तो वह इस बात की गवाही देते हैं कि अब मुफ्त की रेवड़ियो की राजनीति हर एक राजनीतिक दल की मजबूरी बन चुकी है। भले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक समीक्षक मुफ्त की रेवड़ियोेंं की राजनीति का जनक मानते हो लेकिन देश में 7—8 दशक पहले ही इसकी शुरुआत हो चुकी थी। बात सस्ते राशन की हो या फिर खाद बीज और रसोई गैस सिलेंडरों पर तथा पेट्रोल—डीजल आदि पर दी जाने वाली सब्सिडी की, यह सब गरीब व निम्न तबके के उत्थान के नाम पर दी जाने वाली मदद इसी का एक परिष्कृत रूप था। जिसे नए तरीके से अरविंद केजरीवाल और वर्तमान मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा देश के लोगों के सामने परोसने का काम किया गया। दिल्ली में मुफ्त बिजली—पानी देकर अरविंद केजरीवाल सत्ता में धमाकेदार एंट्री के बाद इसी फार्मूले के दम पर पंजाब में अपनी सत्ता कायम करने में कामयाब क्या हुए अब सभी राजनीतिक दलों को यह लगने लगा है कि यह एक कामयाब फार्मूला है। भले ही कांग्रेस ने देश में कंप्यूटर और डिजिटल इंडिया की नींव रखी हो लेकिन भाजपा ने इसका राजनीतिक फायदा उठाने के जो तरीके इजाद किए वह बेजोड़ साबित हुए। कर्नाटक चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मतदाताओं को यह समझाते दिखे कि कांग्रेस के समय में रुपए में 15 पैसे ही लाभार्थियों तक पहुंचते थे लेकिन अब 100 प्रतिशत लाभ सीधे उनके खाते में पहुंचता है। राजीव गांधी ने कभी कहा था कि भ्रष्टाचार देश की इतनी बड़ी समस्या है कि केंद्र से अगर किसी विकास योजना का एक रूपया दिया जाता है तो 15 पैसे ही लाभार्थियों तक पहुंचता है। अब भाजपा के कार्यकाल में लाभार्थियों को नगद नारायण के रूप में पैसा सीधे खाते में भेजा जा रहा है। भाजपा ने कर्नाटक के चुनावी घोषणा पत्र में 10 किलो मुफ्त राशन हर माह और साल में तीन मुफ्त गैस सिलेंडर तथा आधा लीटर प्रतिदिन मुफ्त दूध देने की घोषणा की है किसान सम्मान निधि तथा अन्य निधियों को जो पहले से ही दी जा रही थी वह तो दी ही जा रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा इन मुफ्त की रेवड़ियों को मुफ्त की रेवड़ी न मानकर गरीब कल्याण और गरीबों के उत्थान की रेवड़िया बता रहे हैं तथा कांग्रेस द्वारा घर की महिला मुखिया को 2000 नगद तथा 200 यूनिट फ्री बिजली व महिलाओं को राज्य परिवहन की बसों में मुफ्त यात्रा को मुफ्त की रेवड़िया बता रहे हैं। कुल मिलाकर यह सब है तो मुफ्त की रेवड़ियंा ही है और इन मुफ्त की रेवडियो को कोई भी दल अपने पार्टी फंड से नहीं बांट रहा है सभी जनता को अन्य करो के माध्यम से निचोड़ कर ही जनता के पैसे से जनता को मुफ्त की रेवड़िया बांटने का काम कर रहे हैं। भले ही यह आम आदमी की समझ से परे की चीज हो और इसके झांसे में आकर वह किसी को भी सत्ता में लाने का काम करें। लेकिन कुल मिलाकर यह मुफ्त की रेंवडियोें की राजनीति देश व समाज के लिए अत्यंत घातक है क्योंकि इसकी आड़ में जन सरोकार और विकास के मुद्दे पीछे छूट रहे हैं। कर्नाटक के एक सर्वे में सामने आया है कि गरीबी व बेरोजगारी तथा भ्रष्टाचार राज्य की सबसे बड़ी समस्या है। 74 फीसदी लोगों का यही मत है लेकिन कर्नाटक के चुनाव में यह मुद्दे कहीं नहीं है गालियों, सांप बिच्छू और मुफ्त की रेवड़ियों पर ही चुनाव हो रहा है।

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